पहली बार 2012 में पांगी जाना हुआ, एक ड्राईवर उस्ताद जी मिले, सरकाघाट जिला मण्डी के थे। बातचीत हुई कुछ देर, बाद में मालूम पड़ा की साहब ड्राईवर नहीं कंडक्टर थे, ड्राईवर की भर्ती ना होने के कारण कंडक्टर ही ड्राईवर थे, वही मेकैनिक, वही अड्डा इंचार्ज भी।
हाल ही में सम्पन्न हुई पांगी यात्रा, जिसमे की हमारे पीछे कुत्ते पड़ गए थे और फिर रात एक बजे पोलिस द्वारा हमारा ‘रेस्क्यू’ किया गया, भद्रकाली चामुंडा मिन्धल के मन्दिर के खत्म हुई। जिस बस में हम मिन्धल मन्दिर तक गए, उसी बस के कंडक्टर साहब हमें अगले दिन किलाड़ (पांगी घाटी का मुख्यालय) से कुल्लू बस में मिले।
और वही साहब तीन हफ्ते बाद कुल्लू से काजा जा रही बस में।
मीनाक्षी चौधरी ने एक पांगी पर किताब लिखी है, वो किताब कहती है की सरकारी कर्मचारी के लिए पांगी का मतलब सजा, कालापानी। और 10 -15 साल बाद भी वो बात आज तक सच है। खासकर ड्राईवर, कंडक्टर लोग के लिए।
सुंदरनगर से एक बस चलती है, सुंदरनगर चम्बा, शाम पांच बजे चलती है, अगले दिन शाम चार बजे वापिस। वही कंडक्टर शाम की बस से वापिस। फिर अगली शाम चम्बा, फिर अगली शाम सुंदरनगर, और शाहरुख़ की कभी ना खत्म होने वाली ओवर एक्टिंग की तरह ये सिलसिला भी चलता रहता है। चम्बा पहुंचना अपने आप में एक चक्रव्यूह में घुसने जैसा है। और हर रोज चम्बा से आना जाना तो पूरी महाभारत से कम नहीं है।
आधे से ज्यादा स्टाफ केलंग, काजा, पांगी में आपको जिला मण्डी का मिलेगा। और स्टाफ भी ऐसा की एक बार आ गए तो जाने का कोई नाम नहीं।
हाल ही में HRTC वालों ने ‘Work To Rule’ की मांग की है। आप कहेंगे की वर्क टू रूल क्या मांग हुई, वर्क तो रूल के ही हिसाब से ही होता है।
वर्क तो रूल में ये लोग कहते हैं
-आठ घण्टे से ज्यादा ड्यूटी नहीं
-आठ घण्टे से ज्यादा ड्यूटी पे तुरन्त ओवरटाइम भुगतान
-दुर्गम क्षेत्रों में सबकी बराबर ड्यूटी लगाना
लेकिन इनके साथ ऐसा नहीं है। सुंदरनगर से चम्बा से सुंदरनगर। कुल्लू से काजा से कुल्लू। दिल्ली से मनाली से दिल्ली से मनाली। बिना रुके, बिना थके। न छुट्टी, ना ओवरटाइम का पैसा, और मांगो तो मिलता है ‘show cause notice’ | अभी हाल ही में एक खबर पढ़ी थी, आप भी पढ़िए, HRTC की सात लाख छुट्टियां पेंडिंग
अभी कुछ दिन पहले ही Tata AC बस से चंडीगढ़ आना हुआ। बस भरी हुई थी, आगे केबिन में कंडक्टर बैठ था अपनी छोटी सी सीट पे दुबक के। दिल्ली तक, 474 किलोमीटर तक, उसी एक फुटX एक फुट की सीट पे बैठ हुआ।
फिर दिल्ली में बस की छत पे सोना। और शाम को वापिस। याद रहे, ना ओवरटाइम, न छुट्टी।
चंडीगढ़ बस स्टैंड पे अत्यधिक भीड़ रहती है, 15 मई से 15 जुलाई तक टूरिस्ट सीजन की भीड़ होने से, हर 30 मिनट में एक बस मनाली, हर 20 मिनट में कई सौ सवारी, और हर सवारी के कई कई सौ सवाल।
जो टिकट देने वाला होगा, वो या तो अपनी ड्यूटी के 36वें घण्टे में होगा, या चार दिन से वहीँ बैठ के टिकट काट रहा होगा, बिना छुट्टी के।
मेरे मित्र शशि भूषण, जो की अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार हैं, उनकी जुबानी इन ड्राइवर लोगों को तो माँ के मरने पे भी छुट्टी नहीं दी जाती, और कहा जाता है की पहले एक लोकल रूट लगा के आओ, फिर अंत्येष्टि में जाना |
कभी बस में बैठे हों, चम्बा से पांगी, जब सब सवारी सोई हो सुबह 6 बजे, तो दो लोग जागे होंगे, एक उस्ताद और एक कंडक्टर। और जैसे फौजी के हाथ में जान दे देते हैं बिना जाने पहचाने, वैसे ही इनके हाथों में हमारी जान होती है। दिल्ली से मनाली, कुल्लू से काजा, हम सोते हैं, ये जागते हैं। बिना छुट्टी के, बिना रुके, बिना थके।
फौजी की सब जय जयकार करेंगे, ड्राईवर कंडक्टर को तो कई महीने की तनख्वाह भी नहीं मिलती।
कई साल पहले चंडीगढ़ से घर आ रहा था, शाम आठ से सुबह के चार बज गए, बड़ी भीड़ थी, एक बूढ़े से अंकल टिकट काट रहे थे पूरे टाइम।
मुझे सुबह चार बजे टिकट मिला, मैंने उन्हें धन्यवाद कहा।
अब मुझे HRTC के ड्राईवर कंडक्टर पे गुस्सा नहीं आता।
ये लोग खड़े हो गए तो हिमाचल खड़ा हो जाएगा।
सही बात… इसीलिये हिमाचल रोडवेज की दुर्गमता विश्व प्रसिद्ध है। मैं मुराद हूं हिमाचल रोडवेज का और इन ड्राइवरों-कण्डक्टरों का भी।
चाहे जितना मर्ज़ी वाल्वो में सफर कर ले…मंन हमेशा ऑर्डिनरी में ट्रैवल करने को करता है. रीजन सिम्पल है- कंडक्टर ड्राइवर की “larger than life” approach. ये लोग हीरे हैं. बढ़िया लिखा तरुण…
Sahi baat hai bhai… Mere father bhi HRTC me driver the ab retire ho gye hain.. Tayaji ka Ladka bhi HRTC me driver hai. Mere Chacha bhi HRTC me Driver hain. Bhai ki posting to Kaza me hai pichhle 8 saal se. Great post Tarun.
HRTC Jindabad
बहुत अच्छे भाई। पहली बार किसी ने हिमाचल के इन unrecognized heroes के बारे में कुछ लिखा।
Hindustan ki sarkar apne nagriko par zurm karke hi khush rehti hai…
Gareeb admi ka soshan..
बहुत अच्छा तरुण भाई, बहुत नेक काम किया है आपने जो इनका दर्द दुनिया को बताया, मेरे जैसे कई लोग इस बात से अनजान थे…………..धन्यवाद!
तरण भाई यह लोग भी रोजाना लम्बी यात्रा करते है।कभी कभी थकान होने के बावजूद यह अपना फर्ज हर हाल मे निभाते हैं इनको सैकडो सवारीयो की जिम्मेदारि होती हैं,चाहे सडक खराब हो या जाम की समस्या यह सब इनको रोजाना झेलना पड़ता है,इनकी ड्यूटी व इनकी जज़्बे को मेरा सलाम….।
तरुण, आपको साधुवाद…..इतने कर्मठ समूह का इतना मार्मिक दृष्टान्त प्रस्तुत करने के लिए। हिमाचल के सभी ड्राईवर कंडक्टर उस्ताद को नमन। बहुत सही है की यह हमारे सफ़र के फौजी है जिनके हाथों में हमारी जान होती है। कुछ करना चाहिए हमें इनके लिए।
saluteeee…..
Salute to all Himachali Conductor Bhai…….we know how much they effort.
shaan e himachal “HRTC”
बाकेए ही ये सच है जैसा की मै रोज़ ही HRTC की बस में सफर करता हूँ तो प्रतीत होता है के ये लोग सच में हीरो हैं
हमें रोज़ घर पहुंचाते हैं खुद बस में सोते हैं
इन् लोगों को भी सलाम
सर्कार को इन्के बेहतरी के लिए सोचना चाहिए
nyc work
Great job well done hrtc staff
बहुत अचछा लिखा है आपने. ये लोग सच्चे हीरे हैं. इनकी कहानी सामने लानेकेलिये साधुवाद.