नर्मदा का उद्गम हुआ अमरकंटक से, जहाँ ये एक बिलकुल नाली के रूप में बहती है | और जबलपुर पहुँचते पहुँचते ये इतना ‘विकराल’ रूप धारण कर लेती है कि आपको एहसास हो जाता है कि क्यूँ कर इसे भारत की पांच महान नदियों में से एक माना जाता है| (Click to read first part)
अमरकंटक से जबलपुर की दूरी है 250 किलोमीटर, और सड़क एकदम चकाचक | मध्य प्रदेश में ‘वाटर हार्वेस्टिंग’ (जल संरक्षण) पर काफी काम किया गया है | जगह जगह कुएं, तलाब खुदे हुए मिल जाएंगे | छोटे से छोटे नाले का उपयोग सीधा खेती में किया गया है | पूरे रास्ते में, तालाब कुएं और चौड़ी चौड़ी सड़कें | जबलपुर एक ‘थोडा-साफ़’ थोडा गन्दा सा शहर है | और गाडी चलने वालों के हाल ‘सहारनपुर’ से भी बदतर | जबलपुर में ऑटो को टैक्सी कहा जाता है, और चलने का तरीका एकदम ‘भोपाली’, कहीं से भी घुसो और कहीं भी घुसेड़ दो |
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मेरे पिताजी का कहना है सहारनपुर में जब गाडी चला लो तो कहीं भी चला लोगे | जबलपुर देख के ये धारणा बदल सकती है |
‘ओरिजिनल प्लान’ में भेड़ाघाट (जबलपुर) जाने का कोई इरादा नहीं था , लेकिन जैसे ही मालूम पड़ा की भेड़ाघाट में कभी ओशो – रजनीश ने तैराकी की थी, एकदम से ही जाने का मन बना लिया गया| ओशो की ‘फिलोसोफी ‘ कॉलेज के दिनों में बहुत पढ़ी, पढ़ी क्या याद कर रखी थी और ओशो की जुबान से नर्मदा में तैराकी के किस्से सुन रखे थे | भेड़ाघाट में नर्मदा कहीं कहीं 100 फीट गहरी तक चलती है, एकदम शांत और स्थिर| और मैंने पढ़ा है और सुना है की ओशो इस जलधारा में तैरा करते थे, पूरा पूरा दिन, लगातार बिना रुके बिना थके, स्कूल से भाग के, बाबाओं के साथ, अकेले |
और
शायदसच ही है क्यूंकि जो आदमी नर्मदा की धाराओं में डुबकी लगता हो, वोही आदमी अमेरिका जैसे देश को अपनी सिर्फ ‘कथनी’ से डरा सकता है |
भेड़ाघाट – जबलपुर के पास एक जल प्रपात है , नाम है धुआंधार फाल्स | और नाम ऐसा इसलिए क्यूंकि जब बरसाती मौसम में नर्मदा पूरे उफान पर होती है यहाँ पानी की बूँदें इतनी ऊँची उठती हैं की लगता है जैसे धुआं सा फ़ैल गया हो | नर्मदा के एक छोर से दूसरे छोर तक जाने के लिए रोप- वे बनाया गया है| छोटे छोटे ‘लोकल’ बच्चे बहुत ही खतरनाक तरीके से नर्मदा के पानी में उछल कूद मचाते हैं| और कई तो लोगों को कलाबाज़ी दिखा के पैसे कमाते हैं | जहाँ सिर्फ देखने भर से डर लगता हो, वहाँ ये बच्चे ये बड़ी बड़ी डुबकी मारते हैं नर्मदा के पानी में |
भेड़ाघाट में जहाँ ऊँची ऊँची संगमरमर की चट्टानों के बीच से नर्मदा गुजरती है तो दूसरी तरफ वहाँ ‘चौसठ योगिनी‘ का एक मंदिर भी है| चौसठ योगिनी मतलब चौसठ महिला आकृतियां जो योग के विभिन्न मुद्राओं में चित्रित हैं| हिंदुस्तान में गिने चुने ही चौसठ योगिनी मंदिर हैं, और उनमे भेड़ाघाट का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है | भेड़ाघाट से धुआंधार फाल्स के बीच में बाजार सा है, जो कांगड़ा मंदिर के बाजार की याद दिलाता है |
भेड़ाघाट की खूबसूरती का जिक्र ओशो ने अपनी किसी किताब में किया था | चांदनी रात में आकाश और संगमरमर की दीवारें एक होकर चमकती हैं, और नर्मदा का गहरा पानी ऐसे जान पड़ता है जैसे बिना धरातल, बिना रोक के बह रहा हो | भेड़ाघाट में पीला संगमरमर है, नीला है, काला है, सफ़ेद है, सब तरफ संगमरमर | चांदनी रात में ये सब चट्टानें हीरे मोतियों कि तरह चमकती हैं | भेड़ाघाट से धुआंधार फाल्स तक भी नाव से जाया जा सकता है, लेकिन उसके लिए पैसा चाहिए और कम से कम दो घंटे का समय | हम क्यूंकि रात कि बस से जबलबुर छोड़ कर जगदलपुर (छत्तीसगढ़) जा रहे थे, हमने सस्ता और कम समय वाला ‘आप्शन’ पसंद किया
भेड़ाघाट में दो तरीके के नौका विहार होते हैं, एक ‘शेयरिंग’ और दूसरा ‘प्राइवेट’ | शेयरिंग में 50 – 100 रूपया सवारी, और प्राइवेट में 500 – 600 रूपया की एक ‘बोट’ |और अगर धुआंधार तक जाना हो, तो 1500- 2000रूपया | यहाँ कई हिंदी फिल्मों की शूटिंग हुई है और गाइड आपको बड़े तरीके से, गाने सुना सुना के नर्मदा की कहानियां सुनाते हैं | जबलपुर से भेड़ाघाट की दूरी यही कोई 20-25 किलोमीटर है और थोड़ी थोड़ी देर में, (शायद) आधे घंटे के अंतराल में बसें शहर से भेड़ाघाट आती रहती हैं | आखिरी बस भेड़ाघाट से रात आठ – साढ़े आठ बजे चलती है |
भेड़ाघाट में जहाँ हर रोज कई सौ लोग आते हैं, वहाँ एक भी ‘लाइफ – जैकेट’ न होना अनहोनी को बुलावा देने वाला काम है | और जो गा गा के कहानियां सुनाने वाले गाइड हैं, उनमे से आधे तो पिए हुए थे | इतना खर्च किया लेकिन लाइफ जैकेट न होना एक बहुत ही बेवकूफी भरा काम है | 100 फीट गहरी नर्मदा एक साथ कई लोगों को डूबा सकती है | ऊपर से शराबी ‘ड्राइवर’, कभी भी दुर्घटना हो सकती है |
हमारा ड्राइवर मोहन, जो हमें अमरकंटक से जबलपुर लेकर आया, उसको कहा गया कि मध्यप्रदेश कि सड़कें ‘गज़ब’ हैं, जितना भी हिंदुस्तान मैंने घूमा है उसमे मध्यप्रदेश की सड़कों का कोई जवाब नहीं है | जवाब आया, ” साहब लगता है अभी गुजरात नहीं गए, गाडी की माइलेज एक दम से डबल हो जाती है गुजरात में, और सवारी का टाइम आधा।
लगता है गुजरात जाना ही पड़ेगा |
अगला पड़ाव – दक्षिण बस्तर – जिला दंतेवाड़ा | नक्सलवाद के गढ़ में
मेरे ख्याल से ओशो स्कूल से भागकर जहां घंटों तैरते रहते थे, वो स्थान जबलपुर नहीं, नरसिंहपुर के पास गाडरवारा है, जहां रजनीश का बचपन बीता. इसका ज़िक्र उन्होंने अपने प्रवचनों में भी किया है. जबलपुर वे काफी बाद में आए थे शायद, कॉलेज की पढ़ाई के लिए.
Nice one
BNaat sahi hai aapki. Isiliye maine kaha hai ki Osho is jaldhara me taira katrte the. Aisa nahin kaha hai ki isi point pe taira karte the. And I am because Osho taught and lived in Jabalpur, and the kind of person he was, he swam here too.
Thanks for commenting.
Wah kya baat hai g dil di khuski dur kr di aap ne toh …………………..swaad hi aa gyaaaa
very nice place