दलेर सिंह – द फुल पावर गद्दी
गद्दी चरांदा भेडां, गद्दन देंदी धूपां,
गद्दी जो देंदे भेडां, गद्दन जो देंदे रूपां
This song when translated into English sounds something like this;
‘The Gaddis feed their flocks; the Gaddis offer incenses (to Lord Shiva)
To the Gaddis He (Shiva) gives sheep, And to the Gaddinis beauty’
काँगड़ा – धरमशाला – पालमपुर -चम्बा के भेडपाल घुमंतुओं कि जीवन शैली ने हमेशा मुझे प्रभावित किया है | गर्मियां इनकी पहाड़ों में और सर्दियाँ गुजरती हैं पंजाब हिमाचल के मैदानी इलाकों में | और अक्सर आप इन्हें सड़क किनारे तम्बू लगा के अपना खाना बनाते हुए देख सकते हैं |
बोहर पास कि यात्रा के दौरान मुझे एक गद्दी ‘ग्रुप’ मिला जो लाहौल से उतर कर वापिस काँगड़ा जा रहा था | मैंने रुक कर उनसे बात कि, नमस्ते कि, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया |
कहते हैं कि लोग अक्सर राह चलते इन गड्डियों कि भेड़ें चुरा ले जाते हैं | चलते चलते गाडी में 4 -5 भेड़ उठा के डाल लो और गायब | भेड़ चोरी के लिए थोड़े न पुलिस होती है, जिनसे ‘रेपिस्ट’ नहीं पकडे जाते वो भेड़ चोर को कैसे और क्यूँ पकड़ेंगे ? ये सब कहना है दलेर सिंह का |
दलेर सिंह सिर्फ सोलह साल का था जब वो पहली बार अपने पिता के साथ अपनी भेड़-बकरियां लेकर निकला था | पहले उसे समझ नहीं आया कि इतना चलते क्यूँ है? क्यूँ ऊँचे ऊँचे पहाड़ों में बर्फ में जान गवाने का खतरा लेकर चलते हैं? क्यूँ बारिशों में बिना छत के घरों में रुकते हैं |
फिर उसने एक पूरा ‘समर सीजन’ चम्बा कि वादियों में गुजारा, दुनिया से एकदम दूर, ‘भोले’ के एकदम पास |
अगले ही साल दलेर सिंह जिद करके अपने पिता कि जगह खुद भेड़ बकरियां लेकर वादियों में घूमने लगा | और आज दलेर सिंह 62 साल का हो चुका है | आज भी वो अपना ज्यादा समय हिमालय कि वादियों में बिताता है | पर अब वक़्त वैसा नहीं है या शायद वक़्त वैसा ही है, लोग बदल गए हैं |
दलेर सिंह के दो बेटे हैं और दोनों वहीँ भरमौर में काम करते हैं | अपना खुद का काम छोड़ कर, कई हजार भेड़ों का काफिला हुआ करता था इनके पास कभी, लेकिन अब कुछ सौ भेड़ें बची हैं | कई कम्पनियां इन्हे संपर्क कर चुकी हैं, की भेड़ों को हमारे फार्म में बेच दो, हम तुम्हें नौकरी देंगे, चौकीदार की |
दलेर सिंह कहता है की अपना ही ‘धन’ बेच कर उसकी रखवाली करूँ? अभी भी तो उसीकी रखवाली करता हूँ, अपना समझ कर | पर अभी चौकीदार नहीं हूँ मालिक हूँ, साथी हूँ अपनी भेड़ बकरियों का, कंपनी में जाके भी रखवाली ही करूँगा, लेकिन फिर बन जाऊँगा सिर्फ चौकीदार | उसके बच्चे कहते हैं की इस चोरी चकारी में जान चली गयी किसी दिन फिर? चोर अक्सर बन्दूक लेकर घुमते हैं, इन गद्दियों के पास सिर्फ एक दराती होती है |
तो अब दलेर सिंह के बच्चे ये काम नहीं करते | उसने कुछ लोग रखे हैं जो किसी भी दिन ये काम छोड़ कर भाग खड़े होंगे | दलेर सिंह कहता है कि नरेगा जैसी ‘स्कीमें’ इस देश का बेडा गर्क कर देंगी | खेत- भेड़-काम छोड़ कर अब सारा गाँव सिर्फ नाली खोदता है, एक महीने में एक नाली | सबको पैसा मिलता है, फिर लोग उस पैसे से बाजार जाके 20 -25 रुपये किलो आटा लाते हैं, और फिर कहते हैं कि खाने का सामान कितना महंगा हो गया है | उगाएगा कोई नहीं, सब नाली बनाएँगे तो खाना तो महंगा होगा ही |
इन गद्दियों को अक्सर लोग ‘नोमैड’ कह देते हैं | ‘नोमैड’ वो होते हैं जिनका कोई घर नहीं होता, कोई ‘परमानेंट’ घर | लेकिन हमारे गद्दी भाई ‘नोमैड’ नहीं हैं, ये ‘घुमंतू’ प्रजातियां हैं क्यूंकि इन सब के तो पक्के-कच्चे घर हैं | चम्बा-काँगड़ा-धरमशाला के आस पास | इन्हे ‘नोमैड’ नहीं बल्कि ‘ट्रांस – ह्यूमेंट‘ कहा जा सकता है |
ऊँची से ऊँची पहाड़ी इन गद्दियों को जरा भी विचलित नहीं कर पाती | दराती जोत की ऊंचाई हो या काली-छो का ‘खप्पर’ ये लोग सिर्फ रबर के बूट पेहेन के ‘भोले’ की जय जयकार करते हुए चढ़ जाते हैं | और मैंने इनको देखा है, ये पाँव ऐसे रखते हैं भारी बर्फ पर जैसे मानो फूलों पे चल रहे हों |
जैसे ग़ुलाम अली के गानों में ये बताना मुश्किल हो जाता है की बंदा गा रहा है या हारमोनियम बज रहा है, उसी तरह सिर्फ इनके पाँव की तरफ देखो तो पता नहीं चलता की भेड़ चल रही है या बंदा| एकदम ‘एफ्फर्टलेस्स वाक’ |
लेकिन इन्हे डर लगता है सर्दियों में मैदानों में जाने से | पंजाब, काँगड़ा , पठानकोट के मैदान | वहाँ चार महीने ये लोग रहते हैं, लेकिन ये चार महीने इनके लिए किसी सजा से कम नहीं होते | अक्सर खबर होती है की गद्दियों को डरा-धमका के चोर भेड़ें चुरा के ले गए | कभी 100 भेड़, कभी 50 , मार पीट अलग |
लेकिन अब इन्हे ऊपर गर्मियों में पहाड़ों में आने से भी डर लगता है | जी हाँ, हिमाचल में भी ये चोरी-चकारी का वायरस फ़ैल चुका है | पालमपुर, बैजनाथ, चुवाड़ी, सिंहुता के आस पास जहाँ खुली चरगाहें हैं, और सड़क से दूरी ज्यादा नहीं है, वहाँ भी ये चोरी की वारदातें बढ़ चुकी हैं | अक्सर लोग शराब पी के आते हैं, और गद्दियों को डरा धमका के भेड़ें चुरा के ले जाते हैं | और सरकार, पुलिस कुछ नहीं कर पाती |
भंग जैसी चीज़ जो कोई आदमी अपने ‘कच्छे’ में छुपा के ले जा सकता है , उसके लिए सरकार कुल्लू से स्वारघाट तक 20 नाके, और 100 पुलिस वाले खड़े कर देती है | लेकिन भेड़ बकरियां, जो एक बड़े से ट्रक-टैम्पो में भर कर ले जायी जाती हैं, उन्हें रोकने में पुलिस के पास ‘मैनपावर’ नहीं हैं |
मैं अक्सर सोचता था/हूँ की इन्हे अगर कोई और काम मिल जाए तो क्या ये लोग ये ‘भेड़ें चराने का मुश्किल काम’ छोड़ देंगे?
दलेर सिंह कहता है की उम्र के साथ इंसान को समझ आती है की काम अपना ही अच्छा रहता है, चाहे फिर वो एक दुकान चलने का काम हो या फिर भेड़ें चराने का | और फिर ये भेड़ें चराना तो सिर्फ एक बहाना है, असली नशा तो इन पहाड़ों का है |
शायद दलेर सिंह सही कहता है |
हिमाचल प्रदेश के वन मंत्री भरमौर से हैं | उन्होंने अब तक कई हजार बार घोषणा कर दी है कि भेडपालों कि सुरक्षा के लिए पुलिस कि टुकड़ियां तैनात कि जाएंगी, जिसमे कुछ लाख का खर्च आएगा | धरमशाला-पालमपुर और नूरपुर-काँगड़ा के पास चेक-नाके बनाये जायेंगे |
इसी बीच उन्होंने खुद के लिए, सरकारी खजाने से, टोयोटा कैमरी खरीद ली है जिसकी कीमत सिर्फ 30 लाख है | और साथ ही ये भी कहा है कि कैमरी कि ‘ग्राउंड क्लेयरेंस’ कम है , केमरी को भरमौर जैसे पहाड़ी क्षेत्र में चलने कि दिक्कत होती है| इसलिए मुझे कोई नयी गाडी दी जाए, जैसे कि फॉर्च्यूनर |
और इन सबके बीच दलेर सिंह को मालूम पड़ता है कि खाना बनाने का मसाला और चाय कि चीनी ख़तम हो गयी है , अब वो सब लेने के लिए 22 किलोमीटर चलना पड़ेगा |
December 15, 2013 - 11:57 am
मवेशी चोरों के सशत्र और मोबाइल गिरोह आजकल मैदानी इलाकों में घुमन्तु गद्दी भेडपालकों के अस्थाई ठिकानों पर रात को घात लगाकर धावा बोलते हैं और भेड़-बकरियों को गाड़ियों में लूट कर रफूचक्कर हो जाते हैं| घुमन्तु भेड़ पालन को ह्तोसाहित करने में इन लफंगों/मवेशी लुटेरों का बहुत बड़ा योगदान है जिसके चलते भेड़ पालकों की भावी पीढी इस व्यवसाय से इस कदर मुंह मोड़ रही है कि भेड़-बकरी के घुमन्तु झुण्ड हेतु “भुआल” यानी रखवाले गडरियों की भारी कमी महसूस की जा रही है और इसी के चलते अधिकतर गद्दी भेड़ पालक परिवार अपनी वेशकीमती सम्पदा को बेचकर अन्य काम धंधे तलाशने के लिए मजबूर हो रहे हैं|
December 19, 2013 - 9:41 pm
really impressed with everything you have mentioned about gaddi’s…..i admire your way of thinking about us.
December 19, 2013 - 9:41 pm
really impressed with everything you have mentioned about gaddi’s…..i admire your way of thinking about us.
March 6, 2014 - 5:32 pm
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March 6, 2014 - 5:34 pm
i have also some experiences about that kind of life ..
hats of for gaddi community
June 28, 2014 - 7:50 pm
Tarun, I’m really impressed by your way of description of mountains and their people and this article about Daler Singh is heart touching and true reflection of the day
June 29, 2014 - 8:58 pm
Thanks brother! SHare the love. Keep Reading