आदि बद्री यात्रा – सरस्वती कि खोज में
‘ॐ’ का मतलब है परम नाद कि अनुभूति, अनुभूति एक ऐसे संगीत कि जो ‘ॐ’ में मौन में छुपा हुआ है | तुम्हे इसे देखना नहीं है, कहना भी नहीं है, सिर्फ सुनना है | पूरी तरह से जब तुम शांत हो जाओगे , उसी पल ये नाद तुम्हें घेर लेगा, चारों ओर से, नृत्य के रूप में, बस वही पल तुम्हारा ‘ओम’ हो जाएगा | ~ ओशो
नदियों और पहाड़ों से मेरा ख़ासा लगाव है, इस साल कि शुरुआत में मैंने तय किया था कि हिमाचल में जितनी भी नदियां बहती हैं, उनके उद्गम स्थल तक जाऊँगा अगले 4 -5 सालों में | सबसे नजदीक जो मैं इस ‘प्लान‘ के अंतर्गत किसी नदी के पहुंचा, वो था ‘स्यूल नदी‘ के उद्गम से ३ किलोमीटर पीछे तक (चम्बा-जम्मू के ‘बार्डर’ के पास ) | उसके बाद बीसियों ट्रेक किये लेकिन नदी के उदद्गम स्थल तक पहुंचना न हो पाया|
शायद ‘नियति’ को कुछ और ही मंजूर था, शायद ‘सरस्वती‘
कुछ दिन पहले एक किताब पढ़ी, ‘द लॉस्ट रिवर – ऑन द ट्रेल ऑफ़ सरस्वती‘, उसीसे जानकारी मिली कि सरस्वती तो हमारे यहाँ से निकलती थी, बिलकुल पोंटा साहिब कि बगल से, जिला यमुनानगर – गाँव बिलासपुर – काठगढ़ के जंगलों से | एक मित्र को कहा तो वो उसी दिन मोटरसाईकिल उठा के मंदिर हो आया | चित्र देखे तो मैंने भी अपना झोला उठाया और निकल पड़ा, सरस्वती कि खोज में |
नदियां अक्सर निशान छोड़ती हैं, कभी विनाश के तो कभी खुशहाली के, सरस्वती भी कोई न कोई निशान छोड़ के गयी होगी, ऐसा मुझे यकीन था है | और काठगढ़ के जंगलों में, सरस्वती के अंश हर ओर बिखरे पड़े हैं |
कहा जाता है कि सरस्वती नदी, कभी सतलुज और यमुना से भी बड़ी नदी हुआ करती थी | शिवालिक कि चोटियों से चोलिस्तान के मरुस्थल तक, अविरल| फिर प्रकृति ने करवट ली, और सरस्वती इस धरा से मिटती चली गई | इसके जो बचे खुचे निशान थे, वो ‘इंटेलेक्चुअल ब्रीड‘ ने अपने अथाह ज्ञान से साफ़ कर दिए | हमें रटवाया गया कि ये नदी तो थी है नहीं, ये सब ‘क्रेजी इंडियंस’ के दिमाग कि उपज है |
लेकिन ये क्रेजी इंडियंस बड़े क्रेजी होते हैं, ऐसा मेरा मानना है | हर एक चीज़ में सवाल करते हैं | और फिर सवाल के जवाब ढूंढ़ने निकल पड़ते हैं | हर साल काठगढ़ में जंगलों में हरयाणा, राजस्थान, और हिमाचल के दूर दराज के इलाकों से लोग सरस्वती वंदना करने आते हैं | और ये काठगढ़ के जंगलों में सिर्फ सरस्वती नदी ही नहीं है, ‘अदि-बद्री’ धाम भी है | शिव-शक्ति और विद्या के उपासकों का संगम स्थल है ‘आदि बद्री ’ धाम |
पोंटा साहिब और यमुनानगर दोनों जगह से 30-40 किलोमीटर कि दूरी पर है आदि बद्री धाम| आज सरस्वती सिमट के रह गयी है एक छोटे से नाले के रूप में, नाला भी नहीं, एक छोटी सी नाली है | वन विभाग इसकी देख रेख करता है, देख-रेख तो नहीं कहेंगे उसे पर हाँ वो सिर्फ एक गले पड़ी मुसीबत निभा रहे हैं | एक पुराना सा गेट, एक छोटी सी नाली, एक सरस्वती कि टूटी हुई मूर्ती| साइन बोर्ड चमाचम चमकते हैं, लेकिन बाकी सब धूल-धूसरित सा है |
वही एक हरयाणा से बहुत बड़ा जथा आया हुआ था, ‘हंस-वाहिनी’ को ढूंढते हुए |
सामने एक बोर्ड टंगा हुआ है, जिसमे लिखा है कि NASA ने कहा सरस्वती थी, तो अब सारा भारत मानता है कि सरस्वती थी | वैसे अभी भी सारा भारत नहीं मानता है, एक दो बार नासा और कह दे तो सब लोग मान जाएंगे शायद |
वैसे जिस बोर्ड पे ये सब जानकारी दी गयी है, उसकी भी हालत काफी ख़राब थी, और आज से 10-15 साल बाद हो सकता है कि NASA को फिर बुलाना पड़ेगा उस बोर्ड को ढुंडवाने के लिए |
वैसे रिग-वेद में भी कहा गया है कि सरस्वती थी, कई हजार साल पहले, पर रिग-वेद तो ढकोसला है, असली साइंस तो NASA में है |
आदि बद्री एक ‘समन्वयवादी स्थल’ है, जहाँ वैष्णवों कि प्रार्थना का स्थान (अदि बद्री नारायण), शिव आराधना कि भूमि (श्री केदारनाथ जी), और विद्या साधकों कि तपस्थली (मंत्रा देवी) तीनो एक साथ विराजमान हैं |
सरस्वती आदि बद्री तीर्थ से ही पहाड़ों को छोड़ कर मैदानी इलाकों में प्रवेश करती थी, और यहीं से शुरू होती थी सरस्वती कि कई सौ मील लम्बी यात्रा | आस पास से सौम्ब्, घग्घर, बाता जैसी अनेक पहाड़ी नदियां सरस्वती में मिलती थी |
आज वहाँ एक छोटा सा नाला बहता है, शायद सौम्ब् नदी है, वहीँ पत्थरों पर पानी के निशान हैं | टेढ़े-मेढ़े घुमावदार | बड़ी बड़ी चट्टानों पर भी पानी के लहरें अपनी छाप छोड़ गयी हैं | जैसे किसी ने हाथ से उन पत्थरों पर नक्काशी कि हो |
बस वहीँ ‘ओम’ का नाद महसूस होता है | एक परम नाद कि अनुभूति शायद |
साउंड्स ऑफ़ साइलेंस यू सी
अगर वो पत्थर कुछ कह पाते तो सुनाते हमें एक महान नदी कि व्यथा | कि भगवान को नदियों-पहाड़ों-पेड़ों में ही रहने दो, सिर्फ मंदिरों में मत रखो | तब जो हुआ वो शायद ‘जियोलॉजिकल परिवर्तन’ था, लेकिन अब जो होगा वो विनाशकारी होगा |
राहुल गांधी ने एक सभा में कहा था, भारत एक नदी है (या शायद ऐसा ही कुछ) | उसने तो मजाक में कहा था, उसको ये बात समझ आये ये उम्मीद करना बेवकूफी है |
लेकिन ये बात हमें समझ क्यूँ नहीं आती, ये पता लगाने के लिए भी शायद NASA को ही बुलाना पड़ेगा |
बौद्ध धर्म के अवशेष
2002 – 2003 में पुरातत्व विभाग ने काठगढ़ में खुदाई कि और चार जगहों से सांस्कृतिक साक्ष्यों कि प्राप्ति हुई | आस – पास के लोग इस जगह को ‘सिम्बाडा’ कह के बुलाते हैं | बौद्ध स्तूपों के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं, और उसे ‘ईंटो वाली’ के नाम से जाना जाता है | सौम्ब् और सरस्वती के संगम पर एक बौद्ध विहार के अवशेष मिले हैं |
साथ ही में एक ‘इंटरप्रिटेशन सेण्टर’ बनाया गया है, जो शायद खुदाई के एक-दो साल बाद बनाया गया था| बहुत खर्च किया गया, बड़े बड़े म्यूजियम बनाये गए, और आज वहाँ सिर्फ एक चौकीदार रहता है | कभी कभार इक्का दुक्का ‘ट्रेकिंग ग्रुप्स’ आ जाते हैं | चौकीदार सिर्फ एक लाइन कहता है कि काम चल रहा है | क्या काम चल रहा है ये उसे नहीं पता और शायद उसके लिए भी NASA को ही बुलाना पड़ेगा कि पता तो चले कि काम क्या चल रहा है |
जो कुछ भी पुरातत्व विभाग ने खोद के निकला, पुरातन भवनों के अवशेष, बर्तन, मूर्तियां, वो सब कुछ बहार ही ‘फिट’ कर दिए गए हैं | खुले आसमान के नीचे | आज तक तो सब अवशेष मैंने सुरक्षित रूप से म्यूजियम के अंदर ही देखे हैं, ये कुछ अलग ही किस्म का चमत्कार था |
पुरातत्व विभाग और उसके क्रिया कलाप समझना आसान काम नहीं है | हिमाचल के मंदिरों और किलों का जो इन्होने ‘काया-कल्प’ किया है उससे तो लगता है कि जो भवन, अवशेष इतने सालों से नहीं टूटे, उनको तोडना बिगाड़ना इनका मुख्या पेशा है |
खैर, आप लोग जाईयेगा जरुर, सरस्वती दर्शन करने | और हो सके तो ये किताब जरुर पढियेगा | (The Lost River by Michel Danino)
| जय जय हंस वाहिनी |
November 17, 2013 - 5:34 pm
“जो कुछ भी पुरातत्व विभाग ने खोद के निकला, पुरातन भवनों के अवशेष, बर्तन, मूर्तियां, वो सब कुछ बहार ही ‘फिट’ कर दिए गए हैं | खुले आसमान के नीचे | आज तक तो सब अवशेष मैंने सुरक्षित रूप से म्यूजियम के अंदर ही देखे हैं, ये कुछ अलग ही किस्म का चमत्कार था |” ha ha..
no wonder today SHIVA seems to have moved far away from Bharat and has gone in deep deep Meditation; leaving PARVATI Mata alone..ans one day Mata will do that can not be undone!!
November 17, 2013 - 11:10 pm
मैंने भी कुछ समय पहले इस स्थान के बारे में सुना था लेकिन यह नहीं मालूम था कि यह सरस्वती उद्गम है। केदारनाथ के बारे में सुना था बस। अब जाने की इच्छा हो गई।
November 18, 2013 - 4:38 am
The post is brilliant as usual but the effort to put it together in Hindi really pays off well. स्वदेशी का असर साफ़ साफ़ दिख रहा है अौर हमारे प्रेरणा का सऋोत अौर कोई नहीं बल्कि अपने पंडितजी हैं । writing this small line in Hindi had become almost impossible for me,(errors in it are countless) so I can well imagine the efforts that you have put in to make this post a special one.you are really growing as a writer bro and I hope you will soon pen it down in form of a book.
November 19, 2013 - 6:54 pm
बहुत सुंदर