कहानी कहती है कि एक बार कुछ डाकू आये और झील का सोना लूट के निकल लिया, उन सबकी आँखें फूट गयी, सब के सब अंधे हो गए | एक बार जहाज गया था उस पहाड़ी के ऊपर से, वो भी गिर गया और उस कहानी को देवता का श्राप मानते हुए आज तक उस पहाड़ी के ऊपर से कोई जहाज नहीं गुजरा |यहाँ से कुछ दूर ट्रेक करने पर हम पहुँचते हैं शिकारी देवी के मंदिर में जो कि ३३०० मीटर कि ऊंचाई पे स्थित है, और यहाँ बर्फ गिरती है सर्दियों में भयंकर, पांच पांच फीट|
थोडा नीचे आने पे जन्जेहली (Janjehli Valley) में एक भीम शिला है जो नाम कि तरह भीमकाय है लेकिन माना जाता है हाथ कि सबसे छोटी ऊँगली से हिलाने पे हिल जाती है | हिमाचल का सबसे प्रसिद्द पास, रोहतांग पास भी देवता कि तरह पूजा जाता है | कहते हैं रोहतांग पास का मतलब है रूहों का घर , यहाँ सबसे ज्यादा मौतें होती हैं सैलानियों कि, क्यूंकि यहाँ मौसम किसी भी पल बदल जाता है | हर साल रोहतांग (Rohtang Pass) खुलने से पहले रोहतांग कि पूजा होती है ताकि कोई त्रासदी न हो और इसी पूजा से बोर्डर रोड ओर्गनाइज़ेशन के जवानों को भरोसा आता है माइनस २० डिग्री में काम करने का|
बात करते हैं कुल्लू जिला कि, कुल्लू हिमाचल का सबसे रहस्यमयी जिला है| यहाँ ऐसी ऐसी कहानियां, मंदिर, इमारतें मौजूद हैं कि बस आप कहानियां ही सुनते रह जाओगे| यहाँ कुल्लू का दुशहरा होता है जिसे अंतर्राष्ट्रीय दर्ज़ा मिला हुआ है, मेले कि ख़ास बात ये है कि जब तक देव रघुनाथ ना आ जाए, ये मेला नहीं शुरू होता| वैसा ही मंडी की शिवरात्रि में हैं की जब तक देव कमरुनाग नहीं आएगा, मेला नहीं शुरू होगा|
कुल्लू जिला में जात पात का भी बहुत लफड़ा है| किसी किसी गाँव में अनुसूचित जाति वाले लोगों को गाँव में नहीं घुसने दिया जाता, कहीं कहीं गाँव में तो जा सकते हैं पर घरों में नहीं जा सकते| मंडी जिले के कुछ गाँव जो कुल्लू जिले से लगते हैं, वहां भी जात पात का प्रचलन बहुत ज्यादा है|
कोई चमार जाति का इन्सान हो, पहले तो ये समझा जाए की चमार कौन है? चमार वो है जो चमड़े का काम करे (चम/चर्म = skin), अब पुराने ज़माने में जब चमड़े से काम करते थे तो हाथ गंदे होंगे क्यूंकि टेक्नोलोजी नहीं थी, मशीन नहीं थी, और ऊपर से गरीबी| तो अनुसूचित आदमी मंदिर में नहीं घुसेगा | कुल्लू के बहुत से गाँवों में जात पूछी जाती है बात शुरू करने से पहले और वहां बहुत से गाँव ऐसे हैं जो एक्स्क्लुसिवली राजपूतों या ब्राह्मणों के हैं और वहां अनुसूचित जाती के लोग जा ही नहीं सकते | लेकिन अब जब रहन सहन काफी हद तक बदल गया है तो ये रीति रिवाज़ भी बदल जाने चाहिए|
वैसे ही महिलाओं के मंदिर में प्रवेश वर्जित होते हैं माहवारी (Periods) के दौरान, लेकिन आज जब ये टेक्नोलोजी भी बदल चुकी है, सफाई रखने के कई बेहतर और आसान तरीके मौजूद हैं, तो ये रिवाज भी अब ज्यादा मायने नहीं रखता है| पुराने रीति रिवाज़ तब तक वैलिड थे जब तक आसान तरीका नहीं था| एक तरीका नीचे देखें|
कुल्लू के लघ घाटी में एक गाँव है सेओल, वहां एक जंगल है जिसके पेड़ कम से कम सौ साल पुराने हैं, ये सारा जंगल देवता का है और एक पत्ता भी वहां तोड़ना मना है उस जंगल से| पकड़े जाने पे मंदिर में पेशी लगती है और जुर्माना अलग| अब सोचा जाए तो सौ साल पुराने जंगल को बचाने के लिए कोई कहानी तो बनानी ही पड़ेगी, तो देवता का नाम दे दो और फिर कोई कुछ नहीं करेगा| बिना चालान होने के डर के लोग हेलमेट नहीं पहनते तो जंगल को तो बिना डर के लोग तहस नहस कर देंगे, तो इसलिए देवता का नाम जरुरी है इतने पुराने जंगल को बचाने के लिए| कई गाँवों में देवता के नाम पे हेरिटेज कंजर्व भी हुई है, इसमें कोई दो राय नहीं |
यहाँ से चले जाएँ किन्नौर कि और तो वहां भी यही कहानी है, देवी देवता की | एक जगह है तरंडा ढांक (Taranda Temple) , ढांक पहाड़ी में खाई को कहते हैं| शिमला से किन्नौर में घुसते ही तरंडा ढांक आती है, एकदम सौ-दो सौ फीट खड़ी पहाड़ी और नीचे उफनती हुई सतलुज नदी, गिरने पर बचने का कोई स्कोप नहीं| तो तरंडा मंदिर के पास आने जाने वाले हर एक गाडी रूकती है, जो नहीं रुकता वो सतलुज में समा जाता है, ऐसा लोगों का मानना है|
जिन लोगों को इस बारे नहीं पता होता वो लोग दैवीय प्रकोप से बच जाते हैं, पर जो जान बूझ के न रुके, वो नदी में समा जाता है, ऐसा माना जाता है, किन्नौर में इस मंदिर की बड़ी मान्यता है | बात सही भी है, किन्नौर कि सडकें हैं तो चौड़ी पर अगर गिर गए तो मौत निश्चित है, इसलिए तरंडा ढांक का डर/भरोसा आदमी कि जान बचाने में काफी कारगर साबित होता है|
ऐसा ही स्पीति में कुंजुम पास में होता है, एक मंदिर है कुंजुम टॉप (Kunjum Pass) पे, वहां आने जाने वाली हर गाडी रूकती है, यहाँ तक की अँगरेज़ भी, नहीं तो कुंजुम की घुमावदार सडकें लील लेती हैं इंसान को| ऐसा ही मंडी से मनाली जाते हुए हणोगी माता के मंदिर में होता है , जो रुका नहीं वो रुकता भी नहीं सीधा ऊपर पहुँच जाता है, ऐसा माना जाता है |
यहाँ सतलुज और स्पीती नदियों को भी देवी कि तरह पूजा जाता है | यहाँ पहाड़ों की पूजा होती है | यहाँ पत्थर, मिट्टी, जंगल सब की पूजा होती है| जितने भी ऊँचे ऊँचे पहाड़ है, पास है, टूरिस्ट प्लेसेस हैं सब जगह आपको मंदिर जरुर मिलेगा| और कई जगह तो सिर्फ मंदिर होने कि वजह से टूरिस्ट प्लेस बन गया है |
मेरे ख्याल से यहाँ पूजा करते हैं प्रकृति कि, कहीं नदी कि, कहीं पानी कि, कहीं बर्फ कि, कहीं पत्थर कि क्यूंकि हमें मालूम है कि सब प्रकृति के अधीन है, प्रकृति एक ऐसी रहस्यमयी रचना है कि जिसे बूझ पाना अभी तक मुनासिब नहीं है, पहाड़ों में तो बिलकुल भी नहीं, तो सबसे अच्छा तरीका यही है कि भरोसा रखो, और काम किये जाओ| बस ये भरोसा अन्धविश्वास नहीं बनना चाहिए |
कहाँ से ये कहानियां जन्मी, ये घटनाएं सच में हुई या नहीं, किसीने देखा या दिमाग का फितूर है, इस सब पे गौर ना करें तो हम देखेंगे कि पहाड़ों में प्रकृति पे भरोसा करना बहुत जरुरी है, ऊंचाई पे बसे घर, पहाड़, बादल, बर्फ, नदी, नाले, कुछ भी, कभी भी विपदा ला सकता है, और कई कई सालों सिर्फ भरोसे के दम पे इंसान ने काफी कुछ कर दिखाया है| कुंजुम, रोहतांग पास की सडकें, किन्नौर का मौसम, कुल्लू के बादल, इन सबका कोई भरोसा नहीं है| कोई भी इन्सान हो, उसे हिम्मत , विश्वास होना बड़ा जरुरी है इन जगहों पे की कुछ गलत नहीं होगा, और शायद इसलिए ही ये मंदिर बने , ये रुकने – रोकने की प्रथाएं चली, की देवता ने आशीर्वाद दे दिया है, अब कुछ गलत नहीं होगा, ये एक भरोसा पैदा करने की टेक्निक थी जो धीरे धीरे अंधविश्वास बन गया|
लेकिन ये सब जरुरी भी है और नहीं भी|
वक़्त के बदलने के साथ रीति रिवाज़ भी बदलने जरुरी हैं क्यूंकि रीति रिवाज़ एक लिमिटेड समय तक ही वैलिड रहते हैं उसके बाद अन्धविश्वास बन जाते हैं| जात पात, देवता का श्राप, देवता की नाराजगी ये सब बातें गौर करने लायक हैं की अब जब हमारे रहने , खाने, पीने, और जीने में काफी हद तक बदलाव आ गया है, क्या जरुरी नहीं है की अब इनपे निर्भरता कुछ हद तक कम की जाए?
देवता के आदेश से कई बार सुपर अड्वेंचर भी हो जाता है, यकीन नहीं आता तो ये देखिये, भुंडा महायज्ञ [Read More About Bhunda Story] का एक विडिओ जोकि २००६ में शिमला के रोहडू में आयोजित हुआ था|
भुंडा महायज्ञ, मौत का खेल, देवता का भेस, रोहडू (शिमला)
पहाड़ी के ऊपर से कोई पहाड़ नहीं गुजरा, इसमें कुछ गडबड है, कुंजुम दर्रे पर भी जल्द ही जाना होगा।
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http://www.youtube.com/watch?v=iFSJGI6YGb4&feature=youtu.be The Kunzum Ritual Maneesh Chauhan.
its so serene yet enthralling !!! but what's the ritual ??
Maneesh Chauhan take a round. temple ka chakar lagana is the ritual
Tarun Goel okk !! needless to say ur trip was awesomme man !!
vary gud himanchal pardesh.
…………… best story i ever heard………..
or bhula santos kya hal h.
mast kya ho ra aaj kal