River Beas Mandi Kotli Dharmpur Sandhol

महल मोरियां (हमीरपुर ) का किला और जनाब रूमी वैद (The Fort in Hamirpur , Himachal Pradesh)

भारत के लगभग हर छोटे बड़े शहर  में किला होगा, हिमाचल में जहाँ जहाँ मैं घूमा हूँ, वहां सब जगह मैंने किले देखे हैं, कुछ धूल खाते हुए तो कुछ नयी चमक के साथ घुमक्कड़ों को आकर्षित करते हुए | राजा रहता सिर्फ कुछ चुनिन्दा किलों में था, और बाकी उसके सरहदी किले होते थे| हमले की स्थिति में चेतावनी देने के लिए और कभी रंगरलियाँ मानाने के लिए| आपने सुना होगा कि हमले होने पर किले कि मीनारों में आग लगा दी जाती थी ताकि सेना, राजा, और प्रजा चौकन्नी हो जाए | ये धुआं दूर दूर तक देखा जा सकता था, सरहदी किले में आग लगने का मतलब होता था बंदोबस्त तैयार कर लो, जैसा शायद लार्ड ऑफ़ द रिंग्स मूवी में भी हुआ था, आग लगाओ, धुंआ बनाओ, और तैयार हो जाओ, जंग के लिए |  वैसा ही एक सरहदी किला यहाँ हमीरपुर में भी है, हमीरपुर वैसे तो जाना जाता है पढाई-लिखाई के लिए, कुछ लोग इसे एडुकेशनल कैपिटल ऑफ़ दी स्टेट के नाम से भी पुकारते हैं, टूरिस्म के नाम पे यहाँ एक पार्क है जिसमें बच्चे कम , दिलजले आशिक और नशेड़ी लोग ज्यादा घूमते  हैं , और बाकी सब हवा हवाई ही है| लेकिन एक छोटा सा गाँव हैं यहाँ महल, और वहां है राजाजी  का किला|

हमीरपुर का नाम रखा गया था राजा हमीर के नाम के नाम पर , और राजा होगा तो किला भी होना चाहिए| काफी खोज बीन के बाद किले का पता चला तो हम निकल पड़े कैमरा और मोटर-साईकिल उठा के | किला संसार चंद कि रियासत का किला था जिनका सबसे प्रसिद्द किला काँगड़ा में है| जगह का नाम तो राजा हमीर के नाम पर है लेकिन जो महल का किला है उसे संसार चंद -II  ने बनवाया है, 1775 -1823 के आस पास | किले तक पहुंचना आसान काम नहीं है, क्यूंकि सड़कों का जो जाल है हमीरपुर में, वो बस किले कि तरफ नहीं जाता, बाकी तो सड़कों कि भूल भुलैयां है ये जगह| बड़े शहरों में गुम होना तो आपने सुना होगा, यहाँ हमीरपुर में भी गुम होने के बड़े किस्से हैं, हर मोड़ पे लिंक रोड है, इधर से घुसो उधर निकल जाओ, हर तरफ सड़कें ही सडकें, ग्रोथ से कभी कभी परेशानी भी हो जाती है|

ये पगडण्डी किले तक नहीं जाती है, रास्ता भटकना आसान बात है 

खैर, किले तक पहुँचने के लिए मेन रोड छोड़ के अन्दर जंगलों में जाना पड़ता है, और सड़क से किला दिखता भी नहीं है | गाँव के बीच से एक छोटी सी (कुनाह) खड्ड है जो आपको किले तक ले जाती है, आस पास इक्का-दुक्का घर हैं और जंगल ठीक ठीक बड़ा है | साथ ही में एक पांडव शैली में निर्मित एक मंदिर है, कितना पुराना है कुछ कहा नहीं जा सकता| खड्ड पार करते ही सामने भगवान का द्वार दिख जाता है, भगवान का द्वार माने शमशान घाट, गाँव के लोगों कि मानें तो ऐसा “शानदार” शमशान घाट पूरे राज्य में कहीं नहीं मिलेगा| वैसे मेरे ख्याल से सुंदरनगर, मेरे गृह नगर का शमशान घाट बड़ा शानदार है, एकदम झील के किनारे, ठंडी हवा चलती है आग से गर्मी भी नहीं लगती लोगों को|

विहंगम दृश्य 

सामने महल गाँव दिखता है, कितनी ऊंचाई होगी?

रेस्ट हट, अंडर कंस्ट्रक्शन 

पंद्रह से बीस मिनट कि चढ़ाई और सामने दिखाई देता है किला, किला क्या है किले के बस अवशेष ही बचे हैं| टूटी हुई चार दीवारें और खूब सारी घास| घास चार से पांच फीट बड़ी थी तो चलने में दिक्कत हो रही थी| आस पास के इलाके में इसे गढ़ के नाम से जाना जाता है, और गाँव के सर पन्च कि मानें तो ये किला तीन से चार मंजिला हुआ करता था कभी, अब बस इसका टॉप फ्लोर ही , टाप फ्लोर कि दीवारें ही बची हुई हैं| वक़्त कि चोट और लोगों के लालच ने इस किले का बेडा गरक कर दिया है| किला खड्ड से कम से कम ५०-५५ (७०-८० भी हो सकता है मेरी सिविल इंजिनीयरिंग  थोड़ी कमजोर  है) मीटर ऊपर होगा और किले कि ऊंचाई भी इतनी ही होगी, कहते हैं कि किले के टॉप फ्लोर से इमरजेंसी एक्सिट  के लिए एक सुरंग बनायीं गयी थी जो सीधी जाके नीचे खड्ड के उस पार निकलती थी|
इसके नीचे है सोना और छिपी हुई सुरंग, तीन मंजिलें और अनेकों कहानियां दबी हुई है यहाँ 
सनसेट का नजारा, स्मोक का सहारा

फिर जब राज ख़तम हो गए, राजाओं के भी और ब्रिटिश राज भी, तब यहाँ लोगों ने आना जाना शुरू किया, कभी घास के लिए तो कभी सोने के लिए| किले में कहा जाता है अथाह  सोना दबा हुआ है मलबे के नीचे , जिसको निकालने के लिए  लोग जाते है कुल्हाड़ी-फावड़ा लेके, लेकिन कभी गाँव के लोग पीट के वापिस भेज देते हैं तो कभी पोलिस आके धुलाई कर देती है, सोना है या नहीं , ये कहना मुश्किल है पर रहस्य पूरा रामसे ब्रदर्ज  कि फिल्मों वाला है|

दैवीय  जलस्त्रोत, इसके साथ में एक प्राचीन मंदिर है 

महल मोरियां जो कि इस किले का आफिशियल  नाम है, इस किले में दो लड़ाईयाँ  हुईं थीं, लड़ाई नहीं दो भीषण युद्ध| पहली बार तो गुरखों को राजा संसार चंद कि सेना ने मार भगाया लेकिन दूसरी बार की हार राजा जी के गले कि आफत बन गयी, राज पाट सब छूट गया इतनी करारी हार का सामना करना पड़ा राजाजी को| राजा संसार चंद का काँगड़ा किला (पढ़िए – मुसाफिर  हूँ यारों पे) भी इस लड़ाई के चक्कर में गुरखों के हाथ लग गया, मुझे लगता है ये गुरखा राजा वही “अमर सिंह थापा जी ” है जिनका  किला जलोड़ी पास में है (रघुपुर किला -जलोड़ी पास, पढ़िए)|

संसार चंद – II ने सुंदरनगर/मंडी के राजा इश्वर सेन को बंदी बनाके रखा था और गुरखे उनको भी छुड़ा ले गए अपने साथ| इश्वर सेन को संसार चंद ने बारह साल तक नादौन के अमतर (पढ़िए अमतर की कहानी)  स्थित किले में बंदी बना के रखा, आठ साल और होते तो वीर-ज़ारा बन जाती| गाँव वालों कि बातों और किंवदंतियों पे गौर फरमायें तो पता चलता है कि महल मोरियां का किला पूरे छह महीने तक जलता रहा, इतनी आग में सोना बचा होगा, ये कह पाना जरा मुश्किल लगता है| मंडी की महाशिवरात्रि का भी इस किले से गहरा सम्बन्ध है|

राजा का वजीर एक मुसलमान था और आज भी उसके वंशज इस गाँव में रहते हैं| सबसे हैरानी कि बात ये है कि इस गाँव में एक भी राजपूत नहीं है, मतलब कि जब आग लगी और मार पड़ी, तो राजा जी अपनी सारी बिरादरी को साथ ले गए| वहीँ पास में एक गाँव है ताल, ताल और महल का नाम एक साथ लिया जाता है, जैसे कि हारसिपत्तन (पढ़िए रहस्यमयी नगरियाँ), ताल दो कारणों से फेमस है, एक वहां एक ताल (जलाशय) हुआ करता था जहाँ राजा के घोड़े बंधा करते थे| और दूसरा रूमी वैद, कहते हैं उसके हाथों में जादू  था, हड्डी कैसे भी, कहीं कि भी, कितने भी एंगल  पे टूटी हो, रूमी वैद उसको ठीक करने कि कुव्वत रखता था| पूरे हिमाचल में सिक्का चलता था रूमी वैद का, जो हमीरपुर में पले बढे हैं, २००० से पहले कि जेनेरेशन , उन सबने इन भाई साहब का नाम सुना है| अब शायद अल्लाह को प्यारे हो गए हैं, पर मैंने उनके जितना किसी और का नाम नहीं सुना है , उनसे ऊपर शायद डाक्टर बंगाली ही होंगे , नो डिस-रिस्पेक्ट |

जंगलात महकमे के लोगों कि ड्यूटी लगती है उधर, ताकि लोग लकड़ी, घास न ले जाएँ सरकारी जमीन से, बस किले को बचाने के लिए कोई नहीं आता शायद, मुझे ये नहीं समझ आता कि मुझे किले देख के ख़ुशी होनी चाहिए या दुःख? किले बनवाए जाते थे लोगों से, बिना मशीनरी के, किले तक पैदल चढ़ने में हवा निकल जाती है, तो जो मजदूर सामान लेके जाता था ऊपर, पत्थर, लकड़ी, पालकियां, उनका तो आधा जन्म ही ढुलाई में निकल जाता होगा, साला अजीब ही हिसाब किताब है जिंदगी का, किसी न किसी को तो मजदूरी करनी ही पड़ती है, चाहे राजतन्त्र हो या प्रजातंत्र|

हमारी सभ्यता, इंजिनीयरिंग के प्रतीक हैं ये किले या बेवकूफी के, मैं कुछ समझ नहीं पाया हूँ इस बात को|

रजवाड़े ख़तम हो गए. किले टूट गए सारे पर मजदूर आज भी मजदूर ही हैं , तब भी पत्थर ढ़ोते थे, अब भी पत्थर ढोते हैं|

16 thoughts on “महल मोरियां (हमीरपुर ) का किला और जनाब रूमी वैद (The Fort in Hamirpur , Himachal Pradesh)”

  1. Nice description. I have been to Sundernager years ago. It was a tiny little town then, in 1974 or 5. Wonder what it is like now.

    Lucky you.. to be able to travel so much.

    Forts are so intriguing. I like the story you were able to dig up.

  2. I got my bone ailment treated from Dr.Roomi Ram Thakur ji of Taal in 1994.What a wonderful man he is.He used to treat complicated bone fracture/dislocation or any sort of problem with mustard oil,bamboo shaft and crab bandage.Sh.Thakur ji a thorough gentleman down to earth used to treat patients free of cost.What a noble soul sent by the Almighty on the earth to serve aggrieved persons.

  3. Dear Tarun

    Excelant reserach, my inlaws house is in mahal morian, and i studied in sundernager. I love himachal and love to roam like you, but the question of bread and butter comes ahead. Please give me your telephone number as I also want to go on motorbike tour with you. Want to see interior Mandi Bilaspur and all distridt of Himachal

  4. Raja Hamir Chand was the ruler of erstwhile Trigarta kingdom from 1700-1747 AD who built the fort
    of Hamirgarh(atop the hill on right side of ‘hathli’ khad) thus the district Hamirpur is named after him.
    The “Mahal-Moriyan” fort which is only known for the two famous battles is also the only jagir which
    was offered to the legitimate inheritor Ranvir Chand(son of Aniruddh Chand and grandson of Maharaja
    Sansar Chand 2) who was forced to settle in the nearby village Karha(then known as karheen) along with
    his brother Pramod Chand due to the fury of Maharaja Ranjeet Singh!

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