जब कभी मुझे सर्दियों में किसी साईकिल यात्रा के लिए तड़के सुबह उठना हो, मेरे अंदर एक स्प्लिट पर्सनैल्टी डिसऑर्डर सा हो जाता है। मेरे दिमाग में एक आवाज़ निम्नलिखित सवाल करती है –
- क्यों जाना है बे इतनी ठंड में?
- इतनी धुँध में कुत्ता काट खाएगा और पता भी न चलेगा
- भुक्की-अफ़ीम के प्रभाव में कोई ट्रक वाला पेल देगा
- घुटनों की ग्रीस खत्म हो जाएगी
एक तरह से मेरे दिमाग में बिग बॉस शुरू हो जाता है और यात्रा जब तक खत्म नहीं हो जाती, तब तक बिग बॉस टास्क चलते रहते हैं।
खैर, चलिए शुरू करते हैं…..
[मेरी पहली किताब – सबसे ऊँचा पहाड़ – हिमाचल प्रदेश में 31 ट्रेक अब अमेजन पर उपलब्ध]
समय: रात दस बजे
बिग बॉस चाहते हैं कि आप अपने मोबाईल में कुमार सानू, गोविंदा और बाई अमरजीत के भरपूर गाने रख भर लें
और ये गाने मोबाईल में “भरने” के चक्कर मे रात के 12 बज गए हैं। सुबह 5 बजे का अलार्म है जो एकदम 5 बजे बज गया है। और अलार्म बजते ही एक बार फिर बिग बॉस शुरू हो गया है – अबे क्या करेगा जाकर इतनी धुँध में?
इसी सोच विचार में सात बज गए हैं, पर अब और देर नहीं कर सकता। जाना तो है ही, पर अगर देरी से गया तो पौंग डैम की गर्मी जला कर हेनरी ओलोंगा जैसी शक्ल बना देगी, जो पहले से ही माशाल्लाह इतनी खूबसूरत है। निकलते-निकलते 7:26AM का समय दिखा रहा है।
मैं जा कहाँ रहा हूँ?
मैं अपने दोस्त अमन आहूजा के रिजॉर्ट में जा रहा हूँ – पौंग ईको विलेज। मैं पहली बार पौंग डैम 2011 में आया था तो यहाँ ज्वाली-गुगलाड़ा के पास रुकने को एक कमरा तक नहीं मिलता था। एक अंग्रेज का हौटल हुआ करता था, डैम के पास, पर उसमें केवल अंग्रेज के डॉलर और पाउंड ही चलते थे, भारतीय रुपया नहीं। लोकल लोगों की मानें तो उनका कहना था कि उस हौटल में “डॉग्स एन्ड इंडियंस आर नॉट अल्लोवेड” – अबे यार ऐसा थोड़े न होता है।
आज हालात थोड़े बदले हैं, कुछ बढ़िया होमस्टे/होटल यहाँ बने हैं और जयराम ठाकुर की हिमाचल सरकार यहाँ एक टूरिज़्म डेवलपमेंट प्रोग्राम भी चला रही है। चला पाएगी या नहीं, ये तो समय ही बताएगा।
तो अमन आहूजा का होटल/ईको विलेज है डैम के पास। होटल से 10 मिनट चलो तो डैम के पानी में मुहँ से मच्छी पकड़ लो, इतना पास।
दूसरा, यहाँ प्रसिद्ध लेखक नीरज मुसाफिर द्वारा प्रकाशित घुमक्कड़ी जिंदाबाद – II का विमोचन समारोह भी है। जिसमें देश के कोने-कोने से लेखक/घुमक्कड़ पधारे हुए थे। किताब का विमोचन तो हो नहीं पाया क्योंकि छापने वाला छपाई छोड़ कलकत्ता-जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में चला गया है। बताओ, बिन किताब का विमोचन कभी काँग्रेस की सरकार में हुआ है कभी? वाह मोदी जी वाह
मेरा ससुराल ज्वाली से पौंग डैम एकदम पास है, और थोड़ा पैडल जोर से मारो तो अमन के पौंग ईको विलेज में भी पहुंचा जा सकता है। यही सोच मैं साईकल गाड़ी में लाद कर साथ लाया हूँ।
तो आते हैं वापिस सुबह 7:30 पर, ज्वाली से मुझे दो रेलवे फ़ाटक लांघ कर तीसरे फाटक से पहले बाएँ मुड़ना है। सड़क बढ़िया है। जहाँ से मुड़ना है, उस जगह का नाम है भरमाड़। सड़क बढ़िया है, ट्रैफिक ज़ीरो। पर यहाँ धुँध का जोर बहुत है। जैसी धुँध पंजाब में पड़ती है, वैसी ही धुँध यहाँ भी रहती है।
भारी धुँध के थपेड़े मुहँ पर आ रहे हैं और ठुड्डी ग्लेशियर जैसी सख्त हो चुकी है। काँगड़ा के कुत्ते पढ़े लिखे मालूम पड़ते हैं, एक नजर देखते हैं और फिर सो जाते हैं। भले कुत्ते हैं। मेरा अनुभव कहता है कि घरों में पलने वाले, एक ही रजाई में मालिक के साथ सोने वाले, डाइनिंग टेबल पर आदमियों के साथ बैठ कर खाना खाने वाले कुत्तों का ज्यादा दिमाग खराब होता है। यहाँ धौलाधार पर्वतमाला से आती खड्डें हैं जिनपर बढ़िया पुल बने हुए हैं पर खड्डों में पत्थर ही पत्थर हैं, पानी बिलकुल भी नहीं है। इस इलाके में खनन की भारी समस्या है और यही जिला हिमाचल का एकमात्र जिला है जिसमें एक नहीं दो खनन अधिकारी बैठते हैं, एक धर्मशाला में और दूसरा नूरपुर में। जिस हिसाब से यहाँ की खड्डें सूखती जा रही हैं, यहाँ दो नहीं पर ढाई सौ खनन अधिकारियों की जरूरत पड़ेगी, तभी खनन रुक पाएगा।
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पंद्रह किलोमीटर साइकिल चलने के बाद अपन अब जसूर-फतेहपुर-पौंग डैम राज्य मार्ग पर पहुँच गए हैं। यहाँ से सड़क बहुत बढ़िया है, और अब धुंध भी गायब हो रही है। पहाड़ी क्षेत्र में साइकिल चलाने के बजाय मैं प्लेन में साइकिल चलाना पसंद करता हूँ क्यूंकि यहाँ एक तो कमरतोड़ चढ़ाई नहीं होती और दूसरे आप एक दिन में 100-150 किलोमीटर साइकिल भी चला सकते हो।
मुझे धमेटा से फतेहपुर हो कर खटियाड़ तक जाना है, खटियाड़ में वर्ल्ड क्लास मच्छी मिलती है, 40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से साइकिल चलाते हुए मैं फ्राइड मच्छी के सपने देखते हुए साइकिल चला रहा हूँ, बढ़िया धूप खिली है पर तभी हल्की सी चढ़ाई पर एक नवयुवती अपने से चौगुने साइज़ के कुत्ते को टहलाते हुए घूम रही है। साइकिल चलते हुए चढ़ाई पर कोई धूर्त कुत्ता आपको मिल जाए तो उससे डेडली कॉम्बो कोई हो ही नहीं सकता।
मैं कुत्ते से बचने की स्कीमें अपने मन में बना रहा हूँ, अगर ये मुझ पर कूदा तो मैं साइकिल वापिस घुमा कर भाग लूंगा, विमोचन का क्या है वो तो मेरे बिना भी हो ही जाएगा। इसी सोच विचार में कुत्ता लड़की के हाथ से जंजीर छुड़ा कर मेरी ओर लपक पड़ा है, मुझ तक पहुँचते ही उसके और मेरे नौं नंबर के जूते का सम्पर्क स्थापित होता है और मित्रों, मैं पूरे भरोसे के साथ कहता हूँ की अगर आप उस कुत्ते से पूछेंगे की किस साइज़ का जूता था, तो 12 नंबर से नीचे नहीं बता पाएगा। अब वो दूर जा कर भौंक रहा है पर अब अपुन सेफ है।
खटियाड़ से दो किलोमीटर पहले राज्यमार्ग छोड़ कर मठियाल गाँव में पौंग ईको विलेज है। सड़क के दोनों तरफ घना जंगल है और जंगल के दोनों ओर पौंग डैम का पानी। यहाँ मैं बहुत से लोगों से मिला पर मैं आदित्य निगम की चर्चा जरूर करना चाहूंगा – आदित्य अपने एक मित्र के साथ कुछ साल पहले चंद्रताल से बारालाचा दर्रे की पैदल यात्रा कर चुके हैं और सेल्फ सपोर्टेड ट्रेकर्स की मेरे दिल में बहुत इज्जत है। उनका ये यात्रा लेख घुमक्क्ड़ी जिंदाबाद – II में छपा है और मुझे उसे पढ़ने में खासी दिलचस्पी है।
पौंग ईको विलेज डैम के साथ लगता है और वहां पानी के साथ-साथ आप साइकिलिंग कर सकते हैं – जैसा मैंने किया पर ध्यान रहे कि आप माइग्रेटरी बर्ड्स के पीछे अपनी साइकिल ले कर न दौड़ें, ऐसा करते हुए पकडे गए तो 1500 साल की जेल का प्रावधान है। अगर आप सीखे हुए तैराक हैं तो पूरा दिन यहाँ पानी में पड़े रहने का भी अलग ही आनंद है। अगर आप रंगरूट हैं या शराब पीकर खुद को तैराक मानते हैं तो आप मच्छियों का भोजन भी बन सकते हैं इसलिए सजग रहें, सतर्क रहें, सुरक्षित रहें।
तो इस यात्रा का निष्कर्ष ये रहा:
- टोटल दूरी – 75 किलोमीटर
- टोटल राइड टाइमिंग – 5 घंटे
- पौंग डैम की सड़कों पर साईकिल चलाना मजेदार अनुभव है।सीधी खड्डा मुक्त सड़कें देखकर तो एक बार ऐसा लगता है कि क्या मैं हिमाचल की सड़कों पर साईकिल चला रहा हूँ या चाँद पर
- 40-45 किलो की लड़कियां जो डेढ़ क्विंटल का खूंखार कुत्ता सुबह-सुबह सड़क पर घुमाने लाती हैं, उझसे पृथ्वी का संतुलन बिगड़ता क्यों नहीं है?
- गाने ऐसे सुनो, जिससे खून उबल जाए और तेज़-तेज़ साईकल चलाने का मन करे जैसे
साड्डा केड़ा बापू करदा ब्लैक नि
जेड़ा तेरे सहर लै लवां फ्लैट नि
अगर आप पौंग ईको विलेज जाना चाहते हैं तो आप निम्नलिखित पतों पर सम्पर्क कर सकते हैं:
अमन आहूजा – फेसबुक
पौंग ईको विलेज – वेबसाइट / इंस्टाग्राम
बहुत बदिया. दृश्यों को शब्दों में अच्छे से दिखाया है.. पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे हम ख़ुद ही साइकिल चला रहे हों…
बहुत ही उम्दा पोस्ट है और खनन माफिया पर अधिकारियों का कोई ज़ौर नहीं चलता।।