सुमनाम-बोक्टा गाँव लाहौल के सबसे सूखे गाँवों में से एक है। लाहौल शीत मरुस्थल में बारिश हो तो समस्या और न हो और भी समस्या। 2003 से लेकर 2007 तक लाहौल के गाँव निरंतर सूखे की चपेट में रहे।
साल 2005: मेरा दोस्त नवीन बोक्टापा, जो सुमनाम का रहने वाला है, गूगल अर्थ पे अपने गाँव के आस पास नए ग्लेशियर या पानी के स्त्रोत ढूंढा करता था, तब उसे ये झील अध-जमी हालत में दिखाई दी। लेकिन गाँव से झील बहुत दूर थी और पानी की समस्या तो हल नहीं हो पायी लेकिन अपने को एडवेंचर के लिए एक नयी जगह मिल गयी, जहाँ पहुँचने में दस साल लग गए।
साल 2015: मैं, नवीन, कमल प्रीत लाहौल में डेरा जमाये हुए थे और रीजुल का आना धर्मशाला से तय हुआ। सिस्सू में पौधों की नरसरी के पास से पहाड़ की तरफ एक रास्ता जाता है, लाबरांग गोम्पा की ओर, वहां जाकर हम चारों टैक्सी से उतरे और अपनी चढ़ाई शुरू की। इस झील की हर साल-दो साल में ‘जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया’ वाले यात्रा करते हैं, ग्लेशियर की नाप-नपाई करने को। क्यूंकि ये झील अभी हाल ही के सालों में बनी है, ग्लेशियर के टूटने खिसकने से तो इसका इंटरनेट पे कोई रिकॉर्ड नहीं था, तो हमने गूगल अर्थ की सुविधा से एक टेढ़ा मेढा रस्ता बनाया जो सिस्सू नाले से चल कर सीधा झील में जाकर मिलता था।
पहली गलती
अब नाले में बहता है पानी, जो अपना रस्ता कैसे भी, कहीं से भी बना लेता है, लेकिन हमारा नाले के साथ चलने का निर्णय प्राणघातक साबित हुआ। नाला आगे जाकर सीधा ऊपर पहाड़ों से भीड़ गया और ये भिड़ंत हमारे लिए भारी साबित हुई। ऊपर खेतों में लोग आलू-टमाटर कर रहे थे और उन तक पहुँचने के सिवाय हमारे पास कोई और रस्ता नहीं था। उन तक पहुँचते पहुँचते सबके मटर छिल गए। खबर ये मिली की आगे कोई झील न है, झील तो चंद्रताल में है।
सुना-अनसुना कर के आगे बढ़े, आगे दूर पहाड़ी पे एक गद्दी दिखा। पिछले साल या शायद उससे भी पहले, दराटी पास या काली छो पास की वापसी में एक गद्दी बस में मिला था, जिसका कहना की ऊपर घेपण की झील है, चंद्रताल से भी बड़ी। अब इतना तो कन्फर्म था की गद्दी को मालूम ही होगा, तो चढ़ाई एक लेवल और ऊपर चढ़ गए। ऊपर पहुँच के दो रस्ते दिखे, एक नीचे ग्लेशियर की ओर जाता हुआ तो दूसरा ऊपर कूहल की तरफ जाता हुआ। हमने नीचे ग्लेशियर में उतरना ठीक समझा
दूसरी गलती
ग्लेशियर में उतरते ही कमल प्रीत धड़ाम से गिरी और उसके अंदर मानो ‘केजरीवाल’ का प्रेत घुस गया हो, जो दो दिन बाद केलंग में जाकर ही बाहर निकला। अब ऊपर गद्दी का कुत्ता था, नीचे हम, और अपना और कुत्तों का तो बैर पुराना है, तो एक कोल्ड वॉर शुरू हो गया। कुत्ता ऊपर ऊपर, हम नीचे नीचे। इस तरफ चलते चलते एक ढलान पर पहुंचे जहाँ न कुत्ता था, और सामने पानी भी था। वहीँ खूंटा गाड़ दिया। टेंट गाड़ते ही बारिश शुरू और ऐसा बरसा की 2003 से 2007 के सूखे की कसर मानो एक ही रात में पूरी होनी हो।
तीसरी गलती
वहां से 1-2 किलोमीटर आगे एक लम्बा चौड़ा मैदान था जहाँ पानी आग, गुफा सब सुविधाएं थी लेकिन इसका पता हमें अगले ही दिन जान पड़ा। सामने पहाड़ी पे छोटे छोटे जुगनुओं जैसे दिए जल रहे थे जो की गद्दियों के डेरे थे। नाले के उस पार जिला कुल्लू के गद्दी, और इस तरफ जिला मंडी के गद्दी। बारिश और हवा के जोर में कभी कोई भेड़ मिमियाती तो ऐसा लगता जैसे तेज़ हवा से ही भेड़ की गर्दन कट रही हो।
रात भर बारिश होती रही और केजरीवाल का प्रेत भारी मार करता गया। अगले दिन नवीन और रिजुल झील की ओर निकल गए, जिसमे रिजुल ने नवीन का घोड़ा बना दिया। रिजुल जैसे फिट आदमी के साथ चलने में किसी का भी घोडा बनना सम्भव है, कैम्प से झील 4 किलोमीटर ही दूर थी और रस्ता ऐसा की आप भाग के चले जाओ। कमल प्रीत दिन भर पहाड़ से गिरने के सपने देखती रही और मैं टेंट के अंदर बोर होता रहा |
जैसा की आप जानते हैं, केजरीवाल जैसा रोग किसी को लगे तो फिर वो आसानी से ठीक नहीं होता। तो कमल प्रीत दूसरे दिन भी सुबह झील तक जाने को तैयार नहीं हुई। रिजुल ने बीती रात पूरी कहानी सुनाई और अगली सुबह साथ चलने का वादा किया। की बारिश हो या तूफान, मैं आपको लेकर चलूँगा। सुबह उठते ही रिजुल दगा दे गया और मुझे एक बार फिर नवीन का मजबूरीवश घोडा बनाना पड़ा। रिजुल और कमल प्रीत टेंट में ही रुक कर दलिया खाते रहे और हम दोनों निकल पड़े झील की ओर।
टेंट से निकलते ही, एक चौड़ा मैदान आया, जहाँ गद्दियों ने पत्थर की गुफा बना रखी थी। आगे झील का पानी रिस रिस कर चौड़े मैदान को गीला कर रहा था। पत्थर की एक बड़ी सी दीवार जो शायद ग्लेशियर के पीछे खिसकने से बनी हो, झील को अपने अंदर रोके खड़ी थी। सामने ग्लेशियर के टुकड़े तैर रहे थे और झील का नीला पानी जैसे ग्लेशियर को खा रहा हो, ऐसा दृश्य बन रहा था।
ऐसी झील GLOF कहते हैं, जिसमे ये डर रहता है की झील फटेगी तो एकदम से बाढ़ आ जाएगी, जैसे कुछ साल पहले तिब्बत में परेछु झील की हाय तौबा फैली थी। हिंदी अखबारों में अक्सर झील के फटने की खबरें आती रहती हैं लेकिन ऐसा सच में कुछ है नहीं। लेकिन इस झील में वैसा नहीं है, झील से निरंतर पानी बाहर निकलता है, और इसका ‘आउटलेट’ एक से डेढ़ मीटर चौड़ा है। आप झील का चक्कर लगा सकते हैं लेकिन उसके लिए बड़े बड़े पत्थरों के ऊपर से जाना होगा, जो हमारे सिलेबस से बाहर की बात थी। बारिश अब तेजी से गिर रही थी, और थोड़ी देर और वहां खड़े रहते तो नवीन का घोड़े से खच्चर बन जाता।
जियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट में इस झील को घेपण गठ का नाम दिया गया है जिसमे घेपण नाम है लाहौल के सबसे सुंदर परबत का और गठ क्या है ये मुझे नहीं मालूम। इसलिए हमने इसे नाम दिया घेपण घाट का| गद्दी लोग इसे अल्यास झील कहते हैं। गूगल मैप में अगर आप देखें तो ये झील कोकसर से भी पास पड़ती है। इसी झील के आस पास कहीं ‘टेम्पो ला’ का पास होना चाहिए जो कोकसर को दारचा से जोड़ता है।
अब करते हैं बात गलती सुधार की। पहली गलती सबसे भारी गलती है इसलिए नाले के साथ बिलकुल न चलें। गद्दी के डेरे या कुहल (सिंचाई के लिए बनाई गयी एक लम्बी नाली जो ग्लेशियर से निकाली जाती है) की तरफ से ऊपर चढ़ें। वहां से एक चौड़ा रस्ता आपको मिलेगा जो सीधा उस ग्लेशियर तक जाएगा जहाँ हमने दूसरी गलती की थी। रस्ते में चाय-पान के लिए गद्दी के डेरे मिलेंगे, आपको पहाड़ी/मंडयाली बोली आती हो तो सोने पे सुहागा। ग्लेशियर के पास से आपको एक संकरे रस्ते से थोड़ा ऊपर/नीचे होना पड़ेगा और उसके बाद आप पहुँच जाएंगे हमारी कैंपसाइट पे जहाँ आपको बिलकुल भी नहीं रुकना है क्यूंकि उसके थोड़ा सा आगे चौड़ा मैदान है|
ट्रेक लगभग 14 किलोमीटर लम्बा है और सिस्सू नाले से झील तक आप लगभग 1400 मीटर ‘अल्टीट्यूड गेन’ करते हैं तो इसे आसान ट्रेक की श्रेणी में रखा जा सकता है बशर्ते आप नाले से ट्रेक शुरू न कर के ऊपर गद्दी के डेरे वाले रस्ते से जाएँ।
An Interesting Report tabled by State Centre for Climate Change can be downloaded here
Gepang Gath GLOF Assessment Study
It’s so amusing to read ur tales _ nice pics indeed.
गोयल साहब ये हिमालय के अनदेखे ओर बेहद खुबसूरत इलाके है। और आपका सालो का अनुभव। सब को एक किताब के रूप में उतार दो हिंदी और अंग्रेजी दोनो version। यकीन मानिए इतिहास बन जायेगा। ये अमूल्य धरोहर भी हमेशा के लिये लिपिबद्ध हो जाएगी। किताब के लिये अच्छा सा हिंदी नाम मे बता दूंगा। ओर तो क्या सहयोग करू
Blog me Taarif ke pul baandhne ka sauda hua tha… yahan khachchar bana diya.. dhokhebaaz gaddar..