मध्य प्रदेश यात्रा की भूमिका आज से कुछ साल पहले बंधी थी, लेकिन चंदेरी और ओरछा उसमे यूँ ही जुड़ गए| कुछ जगहों के नाम ही काफी होते हैं वहां पहुँचने के लिए| जैसे चुराह (चम्बा)| चंदेरी और मोरेना का नाम बहुत पहले सुना था, और इस यात्रा का पहला और अंतिम पड़ाव सिर्फ मोरेना ही रहता अगर मैं अपने घनिष्ठ मित्र गजेंद्र पे भरोसा रखता तो
चंदेरी – पहला पड़ाव | ओरछा – दूसरा पड़ाव
कुछ साल पहले मेरे, मोरेना निवासी, मित्र गजेन्द्र, जो खुद कभी मोरेना नहीं घूमे लेकिन खुद को महान चीनी घुमक्कड़ ‘ह्वेन त्सांग’ से कम नहीं समझते, ने नशे की अधिकता में बयान दे डाला की घूमने के लिए मध्य प्रदेश और उसमे भी चन्देरी – इनसे ऊपर कुछ ना है| साथ चलने का वादा हुआ और ‘गोल्ड होम’ वाइन की ‘दो बोतल’ खत्म होते होते वादा-वचन सब हवा हो लिया |
तो अब यात्रा के अंतिम पड़ाव में पहुँचते हैं ग्वालियर, बढ़िया रेलवे अड्डा है, धुंध छँटी नहीं है, बाहर ऑटो का जमावड़ा लगा हुआ है | साल 2009 में पुणे रहा था कुछ महीनों के लिए, तब से ‘हिंजेवाड़ी’ के ऑटो वालों का ऐसा खौफ दिल में बैठ गया है की एक साथ दो से ज्यादा ऑटो दिख जाएँ तो बल्ड प्रेशर 1200 से ऊपर चला जाता है और हृदयघात सी स्थिति पैदा हो जाती है |
ऑटो वाले घेराव कर लेते हैं, मैं मूक बधिर सा खड़ा हो जाता हूँ – जैसे देवता को बलि देने से एकदम पहले बकरा ‘साइलेंट मोड’ में चला जाता है बिलकुल वैसे ही| ऑटो वाले बताते हैं की मोरेना (चौसठ योगिनी मंदिर) 50 किलोमीटर दूर है, कुछ ग्वालियर-ओरछा की दूरी भी उसमे जोड़ देते हैं | जो दया भाव मेरे मन में ऑटो वालों के प्रति ‘ओला-ऊबर’ बुकिंग करती जनता को देख के आता है, वो एकदम से गायब हो जाता है और मन में ‘अंडरटेकर के चोक स्लैम‘ याद आने लगते हैं |
लेकिन मेरे कुछ कहने करने से पहले ही ऑटो वाले आपस में भिड़ चुके हैं, मोल भाव से बात आगे जा चुकी है,ऑटो वाले 500-800-1200 का औसत 500 निकाल के चलने को तैयार हो जाते हैं| 500 रूपये में मोरेना बटेसर मंदिरों की यात्रा शुरू हो जाती है | ऑटो वाला वहीँ मोरेना का ही रहने वाला है और मैं उससे दो बार ‘कन्फर्म’ करता हूँ की 500 में ले जाना और वापिस छोड़ना भी शामिल है| चौसठ योगिनी का मंदिर जबलपुर-भेड़ाघाट में भी है, लेकिन वहां जाना नहीं हो पाया था|
मंदिर मितावली में है और एकदम गोलाकार, कभी इसकी छतों पे शिखर हुआ करते थे लेकिन अब नहीं हैं | मंदिर महादेव का है, एकत्त्तरसो महादेव मंदिर, चौसठ स्तम्भों पे टिके हुए हैं चौसठ कक्ष और हर एक कक्ष में महादेव का शिवलिंग विराजमान है, कुछ खण्डित हैं| ASI का कहना है की महादेव मंदिर से पहले यहाँ कभी चौसठ योगिनियों का मंदिर हुआ करता था – ऐसा उन्हें एक ‘रिसर्च’ में पता चला है, कौन सी वो रिसर्च है न उन्होंने बताया, न ही मैं ढूंढ पाया |
कहा ये भी जाता है की भारत की लोकसभा इसी मंदिर से प्रेरित होके ‘डिजाईन’ की गयी थी, और देखने में ऐसा लगता भी है, लेकिन न तो इसका कोई प्रमाण सरकारी वेबसाइटों में मिलता है, और न ही ‘मॉडर्न दिल्ली के डिज़ाइनर’ एडवर्ड लुटयेन’ इसके बारे में कुछ कहते हैं | चौसठ योगिनी के मंदिर का निर्माण देवपाल राजा के नाम पे है, जिसने 1218-1239 तक राज किया| चौसठ योगिनी के मंदिर अधिकतर 7 से 12 सदी तक बने, इसलिए इस मंदिर को उस काल से जोड़ा तो जा सकता है|
रविवार का दिन है, चौसठ योगिनियों का मंदिर पिकनिक स्पॉट बना हुआ है , ‘सेल्फी रोग’ से पीड़ित कई लोग जहाँ तहाँ खड़े हुए और लेटे हुए, अजीब सी शक्ल बनाये, एक टांग टेढ़ी करके मिल रहे हैं | मंदिर तक जाने के लिए एक सौ सीढियां चढ़नी पड़ती हैं, हर सीढ़ी पर ‘सेल्फी स्टिक’ के डंडे झूलते हुए पाए जा रहे हैं |
लगता है दुबारा आना पड़ेगा| अंदर एक बंगाली बाबू तीन घण्टों से एक फोटो लेना चाह रहा है जिसमे सिर्फ मंदिर ही दिखे, लेकिन वानर और इंसान का फर्क आज मिट चुका है| बहुत देर बाद जब बंगाली बाबू को मौका मिलता है, तब एकदम से उनके कैमरा के आगे मैं प्रकट हो जाता हूँ और पूछता हूँ,” कोई साफ़ फोटो मिला क्या?”मुझे बंगाली समझ आती होती तो मैं जरूर समझ पाता की उसने मुझे कौन सी गाली दी है |
मंदिर से नीचे दूर दूर तक भिंड मोरेना के खेत दीखते हैं, पानी के अभाव में ऊपर उठती हुई धुंध को अपनी ओर खींचते हुए| भागते चोर की लंगोटी ही सही, या कुछ वैसा ही |
इस बार ऑटो वाले से ज्यादा जल्दी हमें है, यहाँ से निकल कर पड़ावली जाने की, जहाँ बटेसर के मंदिर हैं | इन लोगों से पहले निकलेंगे तो कुछ देख पाएंगे अन्यथा वही परांठे चटनी की महक सूंघ के काम चलाना पड़ेगा |
आज तक मैंने ASI वालों को सिर्फ गाली दी है, लेकिन बटेसर में जैसे ASI वाले भी जैसे किसी जादू में बंध कर काम करते हों| 200 से ज्यादा मंदिर हैं बटेसर में और 80 से ज्यादा ऐसे दिखते हैं जैसे बस अभी बने हों| बटेसर के मंदिर शायद भारत के सबसे बड़े मंदिरों के समूहों में से एक है जिनमे से कुछ मंदिर तो मृतप्राय अवस्था से पुनर्जीवित अवस्था में लाये गए हैं |
बटेसर के कायाकल्प में तीन लोगों का नाम हमेशा लिया जाएगा – ‘वन मैन आर्मी’ के के मुहम्मद, संघ के भूतपूर्व सरसंचालक के सुदर्शन, और डकैत निर्भय सिंह गुर्जर| जिस तरह से दिल्ली मेट्रो के लिए श्रीधरण का नाम लिया जाता है, उसी तरह बटेसर के मंदिरों के लिए के के मुहम्मद का नाम लिया जाता है| भिंड मोरेना आज भी डकैतों के साये से बाहर नहीं आ पाया है, राह चलते किसी के कन्धे और किसी की जेब से झांकती बन्दुक देखके तो मैं इतना ही सोच पाया हूँ | ‘चम्बल के दौर में’- डकैतों के जमाने में मन्दिरों के कायाकल्प की बात करने की भी सोचना बहादुरी है या मूर्खता, ऐसा मेरे लिए कहना मुश्किल है |
डकैत निर्भय गुर्जर से मुहम्मद छह मंदिरो को सुधारने की ‘अनुमति’ मांगते हैं | निर्भय गुर्जर 2005 में मारा जाता है, तो अब रेत माफिया सर उठा लेता है| रेत माफिया से मन्दिरों को संघ के स्वयंसेवक बचाते हैं और आज जो हम बटेसर में देखते हैं वो इन्हीं अनगिनत ‘निस्वार्थ सैनिकों’ की तपस्या का फल है |
पञ्च रथ शैली में बने हुए ये मंदिर में सिर्फ एक मंदिर, भूतेश्वर मंदिर, में पूजा होती है | एक ओर ASI के नवनिर्मित मंदिर खड़े हैं और दूसरी तरफ टूटे फूटे मंदिरों का ढेर पड़ा है, लेकिन टूटे हुए शिखरों और ‘शिव पार्वती’ की मूर्तियों को आसरा है की वो भी पुनर्जीवित होंगे|
मिटटी उठाता हूँ, महीन भूरे रंग की मिटटी है , लोग यादगार के लिए समान ले जाते हैं नए शहरों से, मैं मिटटी उठा लेता हूँ| मध्य प्रदेश भारत के इतिहास में सबसे धनी प्रांत शायद न रहा हो, लेकिन मंदिरों कहानियों दुर्गों के मामले में मध्य प्रदेश से बढ़कर ‘मेरे लिए’ कुछ भी नहीं है | और जिस ‘बीमारू प्रदेश’ में खण्डित मंदिर पुनर्जीवित हो जाएँ, वहां आपको भी जाना चाहिए|
अब चलते हैं, वापिस पहाड़ों की ओर| दिल्ली के लिए ट्रेन है ग्वालियर से , ग्यारह घण्टे लेट | घनी धुंध है, मैं अपने कैमरा में बाटेसर के मंदिरों को देखता हूँ और मुझे गोबिंद सागर और पौंग डैम में डूबे हुए मंदिरों की याद आती है|
उनका भी कायाकल्प हो, उनके लिए भी कोई ‘के के मुहम्मद’ ‘निर्भय सिंह गुर्जरों’ से लड़ेगा, यही उम्मीद है |
आगे पढ़िए: बटेसर की कहानी|के के मुहम्मद |चम्बल की कहानी
वाह भाई जी..
चन्देरी, औरछा, बटेसर,
तीनों पोस्ट एक साथ पढ़ ली..
लेखन,फोटोग्राफी,आपका मिज़ाज सभी लाज़वाब है।
आदत हिन्दी यात्रा वृतान्त पढ़ने की ही लगी है,आज आप के ब्लॉग पर वो भी नजर आ गया..
ब्लॉग पे आपका स्वागत है डाक्टर साहब
अंग्रेजी की महफ़िल भी लगती है यहाँ, उसमे भी आइये 🙂
Madhya Pradesh is so beautiful and so full of history! Thnaks for bringing a good part of it to us…
Great Piece Of Information. Please refer to the following link to find out the history and facts of Himachali Temples:-
http://www.himachali.in/category/temples-himachal-pradesh/
Are you from Arambol?
Shaandaar lekh, मुझे बंगाली समझ आती होती तो मैं जरूर समझ पाता की उसने मुझे कौन सी गाली दी है |, bahut achche se varnan kiya hai aapne….
बहुत बढ़िया लिखते हो भाई…..रोचकता पूर्ण जानकारी