*मेरे एक जानने वाले थे, कलाकार आदमी थे, कहा करते थे, कलाकार आदमी पानी की तरह होता है, उसका रास्ता नहीं कोई रोक सकता | बेइज्जती, गरीबी, ये सब बातें एक स्टेज पे, सुनने-समझने वालों के आगे बेमानी बात हो जाती है | पानी की तरह सब बह जाता है *
कुछ साल पहले MTV वाले लोग आये धर्मशाला, छोटे छोटे लामाओं के साथ एक गाना बनाया ‘कॉल ऑफ़ दी माउंटेन‘, हालांकि उस गाने में मुझे सिवाय हो हल्ले और फ़ालतू के फ्यूज़न के कुछ ख़ास दिखा नहीं, लेकिन उस गाने में हिमाचल के चम्बा का एक बहुत पुराना लोक गीत भी शामिल किया गया |
“आज छतराड़ी हो, कल राखा ओ मेरे प्यारुआ”
छतराड़ी और राख, दोनों ही चम्बा के छोटे छोटे गाँव हैं, और ये लोकगीत हिमाचल के गद्दी समाज का अभिन्न अंग है |
तो MTV के उस वीडियो में दिखे कश्मीरी लाल जी | उम्र करीब करीब 50 साल, और गाना गाने का एकदम अनोखा तरीका | हाथ में ‘bob dylan‘ की तरह दो चार वाद्य यंत्र पकडे हुए | अब देखा तो और जानने की इच्छा हुई, तो YouTube पर तो पूरा खजाना ही मिल गया |
मेरे ही दोस्त विकास राणा और अरविन्द ‘कार्टूनिस्ट’ ने एक मुहिम छेड़ रखी थी | लोकगीतों, और पहाड़ी संस्कृति को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने की, नाम रखा था साम्भ | साम्भ – हमारी परम्पराओं की, हमारी संस्कृति की |
अब साम्भ में कश्मीरी लाल के दो तीन गाने मिले सुनने को, मजा आ गया |
बस तभी से सोच लिया की इनको सुंदरनगर बुलाना है, लाइव परफॉर्मेंस के लिए | बाद में जानने में आया की मंडी शिवरात्रि में मेरे मित्र यश राज़ और जिलाधीश मंडी, संदीप कदम ने कश्मीरी लाल को प्रस्तुति के लिए बुलाया था, 10 हजार लोगों के सामने लाइव |
सुंदरनगर में भी एक मेला होता है, मंडी शिवरात्रि जितना बड़ा तो नहीं, लेकिन उससे किसी भी तरीके से कम भी नहीं | सुंदरनदगर SDM और मेला अधिकारी, हरी सिंह राणा जी ने कश्मीरी लाल के वीडियो देखे और तुरंत से हामी भर दी, बुला लिया जाए कश्मीरी लाल को |
अब कश्मीरी लाल रहने वाले धर्मशाला के , सुंदरनगर से धर्मशाला की दूरी है 150 किलोमीटर, तो कश्मीरी लाल जी आये, बस में , एक साथी के साथ | शाम चार बजे गीत संगीत – सांस्कृतिक संध्या समाप्त हो जाती है, उनको कहा गया की 9 बजे उनका प्रोग्राम चालु होगा और 9 :30 पर खत्म, पर इस तरह के मेलों में अक्सर टाइम मैनेजमेंट बिगड़ जाती है, किसी मंत्री के बेसुरे भांजे से गवाना पड़ता है, तो किसी आला अधिकारी की बीवी के भाई को नचवाना पड़ जाता है |
तो मेले में टाइम मैनेजमेंट का हो गया बेडा गर्क , लेकिन कश्मीरी लाल जी डटे रहे | स्टेज के पीछे, शाम 6 बजे से 9:30 तक | केलंग वजीर की टोपी, हर आने जाने वाले को नमस्ते दोनों हाथ जुड़े हुए, और दोनों कान बाहर स्टेज पर की कब मेरा नाम आये और मैं जाऊं | हिमाचल के सड़कों पे 150 किलोमीटर चल के आना, और उसके बाद चार घंटा इन्तजार करना कोई आसान काम नहीं है |
और जब नंबर आया तो आया | पूरे दस मिनट तक उन्होंने गाय, लेकिन उनके गाने के बाद पूरे पंडाल में सब लोग बस खड़े हो गए तालियां बजने के लिए | हर बन्दे की बत्तीसी बाहर थी |
तो ये हैं कश्मीरी लाल जी | राग पहाड़ी, खंजरी रवाना – मसौदा गायन शैली के कलाकार | सिर्फ तीन साल स्कूल गए और उसके बाद गाने को ही अपना स्कूल बना लिया | नौ साल तक चम्बा में ‘पुन्नू मास्टर’ के पास गाना सीखा | तब गाँव गाँव जाके शादी ब्याह में बजाते थे, ये वो दौर था जब हिमाचल में नया नया रेडियो का पारा चढ़ा था | 93 -94 में पहली बार आकाशवाणी शिमला में मौका मिला, और उसके बाद चार साल तक खेल विभाग के साथ जुड़े रहे | अब जब दौर रेडियो से DD जालंधर का हुआ तो साथ साथ टीवी पे भी एक दो प्रस्तुतियाँ दी |
फिर हाल फिलहाल में आया MTV का वीडियो | और फिर MTV से पहचान और बढ़ी और मेलों में गायकी का दौर खुल के चलने लगा |
जब सुंदरनगर आये तो गाने के बाद मैंने कहा की पैसे मिल गए?
कहा ,हाँ मिल गए |
जितने पैसे मिले उतने की ही रसीद पे ‘साइन ‘किये न ?
अब इतना पढ़ा लिखा होता तो ये बाजा लेके थोड़े न जगह जगह घूमता |
और तब मुझे मालुम पढ़ा की कश्मीरी लाल जी पढ़े लिखे नहीं हैं |
हिमाचल में कोई भी मेला हो, फेस्टिवल हो, त्यौहार हो , पंजाबी गाने वालों की मौज हो जाती है | कभी ‘यो यो’ हनी सिंह, तो कभी गिप्पी ग्रेवाल| फेस्टिवल हिमाचल, कलाकार पंजाबी, कलाकार भी क्या, बस रिकॉर्ड बजता है, और वो बंदर की तरह स्टेज पे उछल कूद करते हैं, और घर जाते हैं |
पंजाब के किसी फेस्टिवल में पहाड़ी कलाकार को तो नहीं बुलाया जाता? लेकिन हमारे यहाँ, चाहे चम्बे का मिंजर हो या कुल्लू का दशहरा , पंजाब से फ़ौज तयार आ जाती है |
अब बताओ जिसके साले के नाम में ही ‘यो यो’ हो, वो कैसा कलाकार हुआ भाई?
खैर , अनपढ़ होने की वजह से कोई कलाकार हो गया? या कलाकार है इसलिए दर्द ज्यादा है ?
इससे ज्यादा कुछ पूछता उससे पहले ही रात दस बजे की बस आ गयी, कश्मीरी लाल जी ने दोनों हाथ जोड़ के नमस्ते कहा और फिर निकल गए |
150 किलोमीटर लम्बी बस यात्रा पर, सुंदरनगर से धर्मशाला |
इसी बीच ख्याल आ गया की कलाकार पानी की तरह होता है, रास्ता ढूंढ ही लेता है |
पढ़ा लिखा हो या फिर के अनपढ़ , एक सच्चे कलाकार के रस्ते को शायद कोई भी रुकावट नहीं रोक सकती |
फिर मैं भी मुस्कुराता हुआ घर की ओर निकल पड़ा , गुनगुनाते हुए
“नोआ जमाना आई गया , भजन कीर्तन कोई नहीं सुन्दा,
घर घर ‘केबल’ लायी लया”