बारसुर मंदिरों और तालाबों का शहर है | सदियों पुराने मंदिर और उतने ही पुराने नदियां और झरने | जैसे हिमाचल के मंडी को मंदिरों कि बहुतायत की वजह से ‘छोटी काशी’ कहा जाता है, छत्तीसगढ़ में बारसुर को भी वही दर्ज़ा प्राप्त है | कभी यहाँ 147 मंदिर और इतने ही तालाब हुआ करते थे| आज मंदिर टूट फूट चुके हैं तो तालाब सूख चुके हैं |
कहने को तो ये लोग आदिवासी हैं, लेकिन इनके भवन, मंदिर, और जल सरंक्षण के तरीके देख के ये समझ नहीं आता की ये लोग पिछड़े हुए हैं या ऐसे ही इनको धक्का देकर जबरदस्ती मुख्यधारा में धकेला जा रहा है |
जहाँ कभी 147 मंदिर हुआ करते थे, आज सिर्फ पांच या छह मंदिर बचे हैं, जिसमे से अधिकतर ख़त्म होने के इन्तेजार में हैं | इंद्रावती नदी के साथ साथ ये शहर बसा हुआ है और यहीं से नक्सलियों के गढ़ ‘अबूझमाड़ ‘ के लिए रास्ता जाता है | अबूझमाड़ का मतलब है अबूझ, एकदम अनदेखा , और वहाँ घुसने का मतलब है मौत के मुहं में पाँव डालना |
बारसुर के बस अड्डे पे उतरते ही मंदिरों के दर्शन हो जाते हैं | यहाँ पांच प्रसिद्ध मंदिर हैं – मामा-भांजा मंदिर, चंद्रादित्य मंदिर, गणेश मंदिर, बत्तीसा मंदिर, और और जंगल में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर |
1- पढ़ें अमरकंटक एक्सप्रेस | 2- पढ़ें भेड़ाघाट धुआंधार फाल्स | 3 – पढ़ें सतपुड़ा के जंगलों से के गढ़ बस्तर तक
मामा- भांजा मंदिर
वैसे तो ये मंदिर शिव को समर्पित है लेकिन नाम इसका ‘मामा – भांजा’ मंदिर है | कहते हैं, मामा और भांजा दो शिल्पकार थे जिन्हे ये मंदिर ‘सिर्फ एक दिन’ में पूरा करने का काम मिला था | और उन दोनों ने ये मंदिर सिर्फ एक दिन में बना दिया | मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के देख रेख में है लेकिन न तो कोई बोर्ड दिखा और न ही कोई दिशा निर्देश की मंदिर कब बना क्यूँ बना कैसे बना | हिमाचल में कम से कम बोर्ड तो लगा दिए जाते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार को लगता है बोर्ड लगाने का भी वक़्त नहीं मिला | पर जहाँ पिछले चालीस साल से नक्सलवाद फल – फूल रहा हो, वहाँ जान बचाना ज्यादा जरुरी है, ‘हेरिटेज’ बचाने से | लेकिन अगर बुजुर्गों कि मानें तो ‘हेरिटेज’ बचा ली जाए तो जान खुद बच जाती है |
मामा भांजा मंदिर काफी ऊँचा मंदिर है, और इसमें ऊपर दो तरफ मामा और भांजा के पत्थर की मूर्तियां बनायीं गयी हैं | अब सोचने वाली बात है की मंदिर बनाया मामा भांजा ने, शिव को समर्पित, और उसमे उनकी खुद की भी मूर्ति लग गयी | तो सवाल ये है कि उनकी मूर्ति किसने बनायी – लगवायी? खुद उन्होंने या किसी और ने?
मंदिर काफी जर्जर हालत में है, पुरातत्व विभाग इसको सुधरने के काम में जुटा हुआ है, जगह जगह सरिया – सीमेंट बिखरे हुए दिख जायेंगे | पर इस हालत में भी ये मंदिर अत्यंत सुन्दर है |
गणेश मंदिर
गणेश का ये मंदिर भी जर्जर हालत में है| इस मंदिर के बाहर टूटे हुए पुराने मंदिर के अवशेष पड़े हुए हैं, और गणेश की जो दो बची हुई मूर्तियां हैं, उन्हें लोहे के जंगले में रखा गया है, ताला लगाके | अन्यथा भारतीयों का फेवरिट टाइम पास है, मूर्तियों पे अपना नाम – फोन नंबर- और – प्रेमी/प्रेमिका का नाम लिखना, और जिस तरह से ताला लगाया गया है, लगता है हिन्दुस्तानियों ने गणेश जी के पेट पे भी अपना प्यार – प्रेम दर्शा दिया है |
यहाँ एक गणेश की एक बड़ी मूर्ति है, और एक छोटी, और दोनों ‘मोनोलिथिक’ हैं, यानि के एक बड़ी चट्टान से कांट छांट के बनायीं गयी, बिना किसी जोड़ – तोड़ के | जहाँ एक गणेश की मूर्ति में लड्डू छुपा के – सम्भाल के रखे हैं, तो दूसरे में गणेश जी लड्डू का भोग लगा चुके हैं, और आराम से ‘रिलैक्स’ होक पेट फुला के बैठे हैं | और ये कलाकार की कलाकारी ही है, की उसने एक ही पत्थर में दो तरीके के भाव दर्शा दिए हैं |
यहीं इस मंदिर के पास में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा एक कन्या विद्यालय चलाया जाता है | भाग्यवश वहाँ भी जाना हुआ, और देखा की कैसे ये जंगल के ‘अनपढ़’ ‘गंवार’ ‘जंगली’ लोग आपस में मिल कर के नक्सलवाद की समस्या से लड़ रहे हैं | वहाँ जगदलपुर (मध्य क्षेत्र के) संघ प्रभारी से मिलना हुआ, और उनसे जानने को मिला की संघ के कार्यकर्ता, ‘अभुजमाड़’ के जंगलों में जा कर भी अपनी सेवाएं देते हैं | भारतीय सेना के जवानों के साथ कन्धा मिला कर के |
कन्या विद्यालय में बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों से बच्चियां पढ़ती हैं, और उन छोटे बच्चों को पढता लिखता देख के काफी ख़ुशी हुई | और अगर ‘माननीय‘ राहुल गांधी जी के शब्दों में कहा जाए तो ‘वूमेन एम्पावरमेंट एट इट्स बेस्ट‘|
बत्तीसा मंदिर
बत्तीसा मतलब बत्तीस – ‘थर्टी टू‘| इस मंदिर में बत्तीस स्तम्भ हैं | चार X आठ पंक्तियों में एकदम सावधानी से उकेरे गए बड़े बड़े खालिस पत्थर के स्तम्भ | गर्भ गृह के बाहर एकदम सजा – धजा हुआ नंदी बैल, तो गर्भ गृह के अंदर एक अत्यंत सुन्दर , अनदेखा सा शिवलिंग! शिवलिंग पत्थर का बना हुआ था, और वो एक बड़े से मैकेनिकल सिस्टम पर टिका हुआ था| जैसे पन चक्की घूमती है, पानी के गिरने से , वैसे ही ये शिवलिंग भी घूमता था | और ये सारा पत्थर का बना हुआ था| यानि के कई सौ सालों से इसे घुमाया जा रहा था, और ये घूम रहा था |
बिना आवाज़ के, बिना किसी फ्रिक्शन के, एकदम प्यार से शिवलिंग पूरा घूम रहा था | हमने उसे खूब घुमा के देखा, हाथ डाल के मेकनिस्म समझने की कोशिश भी की, पर आदिवासियों की इंजीनियरिंग हम दोनों ‘NITians ‘ की समझ से परे थी | अगर किसीको छत्तीसगढ़ जाना हो, तो ये मंदिर ये शिवलिंग जरुर देखना चाहिए |
और अब बात करते हैं अबूझमाड़ की | जो महानुभाव हमें मंदिरों और कन्या महाविद्यालय ले गए थे, उन्ही की गाडी में बैठ कर ‘सात धारा ‘ देखने गए, जहाँ इंद्रावती नदी सात धाराओं में बँट जाती है , जो की बारसूर से पांच किलोमीटर की दुरी पर है | जैसे ही दो तीन किलोमीटर आगे गए, ऐसा लगा जैसे उधमपुर कैंट में पहुँच गए हों | चारों तरफ फौजी, जवान, बैरक, नुकीली बाड़, और बन्दूक धारी कमांडो | और जैसे ही नदी के पुल पे पहुंचे, एकदम चौड़ी सड़क एकदम से गायब | एक चेक पोस्ट पे हमें रोका गया, कुछ पूछताछ हुई, और फिर शुरू हुआ डरावनी कहानियों का दौर |
यहीं कहीं, नक्सलियों ने घुस कर सेना के जवानों पर हमला किया था | यहीं पर नक्सली गाँव के लोगों के भेस में आकर इधर से उधर हथियार ले जाते हैं | ऐसा लगता है जैसे जंगल सड़क को खा रहा हो | एकदम से सीधी सड़क, बड़ा सा पुल, नीचे इंद्रावती का नीला पानी, और एकदम से रास्ता गायब | ऐसा लगता है जैसे किसी ने जादू से सड़क गायब कर दी हो | हाथ के इशारे से ‘आबरा – का – डाबरा’ कह के जंगल खड़ा कर दिया हो, एकदम सपाट सड़क के सामने | और जंगल भी ऐसा की घुसना तो दूर की बात, देखने में भी डर लग जाए |
बीच जंगल में एक शिवजी का मंदिर है जहाँ सिर्फ शिवरात्रि के दिन लोग जाते हैं, बाकी टाइम वो दुनिया, इस दुनिया से एकदम अलग थलग पड़ी रहती है |
एकदम अलग, सुनसान, और गुमनाम |
जहाँ ऐसी समस्याएं मुहं फैलाये खड़ी हों, वहाँ मंदिरों में ‘बोर्ड’ न होना तो कोई समस्या ही नहीं है, और हिमाचल से सौ गुना बेहतर सड़कें होना एक बहुत बड़ी ‘अचीवमेंट’ है |
अगला पड़ाव – भारत के नियाग्रा फाल्स चित्रकूट फाल्स और छत्तीसगढ़ के खजुराहो – भोरमदेव मंदिर |
Very nice discription……. There is so much to see in India…. Main problem is no maintenance & information ……
GREAT POST. PLEASE INCLUDE ENGLISH VERSION ALSO.
Very good information, can we have an English translation as it Wii lndians living abroad and also to an extent people of Tamilnadu, Kerala, Karnataka,Assam /NE to understand
so much to see and learn in our own country
puratatvi ki rakh rakhav honi chahiye
chhattishgarh ki sarkar sirf raipur city ko 13 saal se saja rahe hai baki ke sahar gaw jila se hamari sarkar ko koi jarurat nahi hai kyoki unke sabhi ristedaar sirf raipur me hai aur khud bhi esliye.baki logo se kya matalab.
Going to Jagdalpur,Dantewada,Chitrakoot,Tirathgarh,Kutumsar,Kanger,Danteswari,Barsur and Bodhghat Satghat during Puja Vacation 2018.Thanx 4 informations.