सतपुड़ा के जंगलों से नक्सलियों के गढ़ बस्तर तक | सात दिन हिंदुस्तान

बस्तर – दंतेवाड़ा इनके सिर्फ नाम सुन रखे थे | और जो हिसाब किताब मीडिया – अखबार ने दिखा सुना रखा था, उससे तो यही लगा कि न सड़कें होंगी न घर – मकान, सिर्फ जंगल और हिंसा का नंगा नाच | जैसे पाकिस्तान जाने से पहले लगता था कि सब लोग एक दूसरे को बम्ब से उड़ाने के लिए तैयार रहते होंगे, बिलकुल वैसी ही कुछ ‘फीलिंग’ बस्तर – दंतेवाड़ा के लिए भी थी |

बस्तर को छत्तीसगढ़ का कश्मीर कहा जाता है | वहाँ भी आतंकवाद , यहाँ भी आतंकवाद, यहाँ भी शहीद ‘लोग – जवान’, वहाँ भी शहीद ‘लोग – जवान’ | यहाँ भी चारों और प्रकृति कि खूबसूरती, और वहाँ भी| मानो जैसे हिंदुस्तान की दो सबसे खूबसूरत जगहों को एक साथ ग्रहण लग गया हो | लेकिन जैसे धीरे धीरे आतंकी कश्मीर से गायब हो रहे हैं, वैसे ही यहाँ से भी नक्सली गायब हो रहे हैं | उम्मीद है आने वाले पांच सालों में नक्सलवाद का जड़ से सफाया हो जाएगा |और मेरी इच्छा तो ये  है कि नक्सली तो जाएँ ही, साथ में उनके चाहने वाले भी लगे हाथों ‘टाटा – बाय’ कर दिए जाएँ | खैर!

1- पढ़ें अमरकंटक एक्सप्रेस | 2- पढ़ें भेड़ाघाट धुआंधार फाल्स 

भेड़ाघाट से निकले तो जबलपुर गए, और जबलपुर से रात कि बस पकड़ के दंतेवाड़ा – बस्तर कि तरफ मुहं कर के पहली बस में घुस गए | जबलपुर (मध्य प्रदेश) से छत्तीसगढ़ के ‘बॉर्डर’ के पास सड़क एकदम जानलेवा है, और इतने ऊँचे ऊँचे झटके लगते हैं कि सोया मरा हुआ आदमी भी उठ खड़ा हो | सड़क का वो हिस्सा याद करके अभी भी हड्डियों में दर्द उठ जाती है | खैर रात भर के आठ घंटे , हलकी से थोड़ी ज्यादा ठण्ड में यात्रा करने के बाद, सफ़र करके हम लोग रायपुर पहुंचे | मैला कुचैला सा शहर और अधपकी सी सड़कें

जैसे ही बस अड्डे पे उतरे, उतरते ही जगदलपुर कि बस मिल गयी , जहाँ से कांगेर घाटी नेशनल पार्क कि सीमाएं शुरू होती हैं | छत्तीसगढ़ के जंगलों में ‘इको-टूरिस्म’ को ख़ासा बढ़ावा दिया गया है, और पूरे छत्तीसगढ़ में अनेकों ऐसे राष्ट्रीय पार्क मिल जाएंगे| कांगेर घाटी पार्क को ‘दंडकारण्य’ भी कहा जाता है, जहाँ से होकर ‘श्री राम चंद्र’ गुजरे थे । अरण्य का मतलब है जंगल और दंडक का जंगल सारे बस्तर प्रांत मैं फैला हुआ है, 92200 वर्ग किलोमीटर के दायरे मे । श्री राम चंद्र ‘विद फैमीलि’ इन जंगलो मे 13 साल घूमे थे । राक्षस वध, शूर्पणखा कांड सब यही हुआ था।

Sri Ram padyatra Dandak Aranya Bastar
Sri Ram Chandra’s Adventurous Journey in Bastar

जगदलपुर बस्तर जिले का मुख्यालय है लेकिन ये भारत के किसी भी दूसरे शहर कि तरह ही है, या भारत के कई शहरों से कई गुना अच्छा भी | साफ़-सीधी सड़कें, बेहतरीन ऑटो- बसों का ‘नेटवर्क’. और खाने – रहने के लिए एक से बढ़कर एक सुविधा | हम जैसे सस्ते घुमक्कड़ों को जगदलपुर जैसे शहर बहुत जमते हैं, 300 का कमरा, 40 का खाना, और सस्ती यातायात कि सुविधा |

किराये भाडे की जांच पड्ताल की गयी । एक ऑटो वाले का नाम था अविनाश | और एकदम शराफत से उसने सारा चिट्ठा खोल दिया | कहने लगा 900 रुपये लगेंगे, तीरथगढ़ और कांगेर घाटी के , उससे पहले वाले ने 1500 मांगे थे | साथ ही अविनाश ने ये भी कहा जा तो खुद से या बस से भी सकते हो लेकिन टाइम जादा लगेगा और दूसरा नक्सली इलाका है, काहे को मुसीबत मोल लेना | उसके अनुसार दादा लोग (नक्सली) आम नागरिक को परेशान नहीं करते। लोकल आदमी साथ हो तो खतरा और भी कम, खतरा रहेगा तब भी लेकिन थोड़ा सा कम ।

लेकिन रास्ते में टूटे स्कूल, फटेहाल गाँव वाले, टूटे हैंडपम्प, और डरे हुए सरकारी अधिकारीयों को देख के यकीन पक्का हो गया की नक्सलवाद का मतलब है डर | थोडा जनता के दिल में, थोडा सरकार के, और थोडा सेना के दिल में | क्रान्ति बदलाव कुछ नहीं, सिर्फ डर | कौन क्रांतिकारी साला अस्पताल, बच्चों के स्कूल और पानी के हैंडपम्प तोड़ता है? जगह जगह सुरक्षा बालों के कैंप, मोटरसाइकिल पे गश्त लगते हुए जवान |कांगेर पार्क से आगे साठ सतर किलोमीटर तक कोई भी सुरक्षा कैंप नहीं है और आने जाने वाले बस नक्सलियों के रहमो करम पर ही रहते हैं |

Kutumsar Caves Kanger Valley Park
Kutumsar Caves Kanger Valley Park

अब अगला पड़ाव था कांगेर घाटी पार्क और उससे भी ज्यादा उत्सुकता थी ‘कैलाश गुफा’ देखने कि, जंगलों के भीतर शिव को समर्पित एक गुफा | ये गुफा 200  – 250  मीटर लम्बी है और कई कई जगह पर 150  फीट से भी ज्यादा गहरी |

उससे भी पहले आती है कुटुमसर गुफाएं | 1300 मीटर लम्बी और 35  मीटर गहरी | कांगेर घाटी पार्क के मुख्या द्वार से ये गुफाएं 10-20 एक किलोमीटर कि दूरी पर हैं |

इन गुफाओं की ख़ास बात है ‘स्टेलकटाइट’ (satalctite ) और ‘स्टेलेग्माइट’ (satalgmite ) का जमाव | सालों तक मिनरल, चुना, पानी इन गुफाओं से टपकते रहते हैं और जमते रहते हैं | एक सेंटीमीटर का जमाव होने में 5 – 10  साल का समय लगता है, और इन गुफाओं में दस – दस मीटर के बड़े बड़े ‘पिलर’ बन चुके हैं, तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की कब से ये गुफाएं और ये रहस्यमयी आकृतियां इन गुफाओं में बनी पड़ी हैं | कुछ आकृतियां हाथी की सूंड सी दिखती हैं, तो कुछ तलवार जैसी | जो छत से नीचे को ओर लटकेगा उसे कहेंगे satalctite और जमीन से रिस रिस कर खडा होगा उसे कहेंगे satalgmite । गुफाओ मे फोटो खींचना बेहद मुश्किल है । एक तो रोश्नी कम और दूसरा हवा मे नमी । केमरा निकाला नही के लेंस सारा पानी से भर जाता है । यहाँ 11 बजे के बाद जाना चाहिये क्युंकि 11 बजे के बाद ही गुफा के कर्मचारी रोश्नी जलाते हैं ।

Kutumsar Caves Kanger Valley Kailash Gufa
Satalctite Pillars Hanging from the Roof
Kanger Valley Park Kutumsar Caves Kailash Caves
When Satalctite & Satalgmite Meet

कुटुमसर गुफाएं काफी लम्बी, घुमावदार और पेचीदा हैं | अक्सर अंदर गुफाओं में अँधेरा रहता है और बिना बिजली के गिरने का खतरा बढ़ जाता है | इस खतरे से निजात पाने के लिए, पार्क के अधिकारियो ने बाहर ही बोर्ड लगवा रखे हैं, अंदर हुई दुर्घटना के लिए पार्क के कर्मचारी जिम्मेदार नहीं होंगे |

बाहर आस पास के ‘वनवासी’ लोग जंगली फल बेचते हैं | पाँव में चप्पल नहीं, तन पे कपडा नहीं, शरीर में मांस नहीं, और नक्सली इनको आज़ादी दिलवा रहे हैं पिछले कई सालों से |

अविनाश ‘ऑटो वाले’ से बात हुई तो उसने साफ़ कह दिया की कैलाश गुफा जाने का मतलब मौत के मुहं में घुसना | न हमने जोर डाला, न उसने इच्छा जाहिर की , और इस तरह से बिना कैलाश गुफा देखे ही वापिस आना पड़ा |

साथ ही सुकमा – कोंटा जाने वाली सड़क थी, बस वहीँ कहीं आस पास नक्सलियों ने बीते साल पूरे कोंग्रेस नेतृत्व को ‘एनकाउंटर’ में लगभग ख़तम कर दिया था | और छत्तीसगढ़ में अगर मध्यप्रदेश – जबलपुर बार्डर की सड़क निकाल दें, तो सिर्फ सुकमा – कोंटा की सड़क है जिसे ख़राब श्रेणी में रखा जा सकता है, नहीं तो वहाँ के तो हर गाँव की सड़क भी हिमाचल के नेशनल हाइवे से कई गुना बेहतर है |

खैर दादा लोग के इलाके से अब हम निकल गए तीरथगढ़ फाल्स की तरफ | इन्हें दूधिया फाल्स भी कहा जाता है | कांगेर नदी पर ये फाल्स 91 मीटर की ऊंचाई से गिरते हैं और बरसाती मौसम में घनघोर रूप धारण कर लेते हैं | अच्छा पक्का रास्ता बना है यहाँ जंगलों में और कांगेर घाटी पार्क आपको सहज रूप से ही भवानी मिश्रा की कविता की याद दिल देता है, जो कभी बचपन में हम सब ने पढ़ रखी है |

‘सतपुड़ा के घने जंगल, नींद में डूबे हुए से, उंघते अनमने जंगल’

Teeratgarh Falls Kanger Valley National Park Bastar
Teeratgarh Falls – Kanger Valley National Park, Bastar
Teerathgarh Falls Bastar Kanger Valley Park
Teerathgarh Falls, Bastar

जगह जगह हाट लगे रेह्ते हैं, जहाँ ‘वनवासी’ अपना सामान बेचते हैं ।

और आखिर मे अब बात करते हैं दंतेवाड़ा की | दंतेवाड़ा एक छोटा सा क़स्बा है, एक छोटा सा तालाब है , आस पास पहाड़ भी आ जाएँ, तो ऐसा लगेगा की मेरे घर सुंदरनगर पहुँच गए हैं |

Danteshwari Mandir Dantewada Bastar
Danteshwari Mandir Dantewada, Bastar

एक ओर दंतेश्वरी मंदिर है तो दूसरी तरफ दो नदियों का संगम है – डंकिनी और शंखिनी | एक नदी भी भारत में पूजनीय है तो जहाँ संगम हो जाए वहाँ तो मेला लग जाता है | लोकल मान्यता है की दंतेश्वरी मंदिर में जाने से पहले संगम में स्नान करना चाहिए| और मंदिर में दर्शन तभी होंगे जब धोती पहनी होगी | धोती लगायी किसी भी स्टाइल में सकती है, जैसे तौलिये की तरह लपेट कर, लेकिन जाना धोती पहन कर ही होगा |

रहने के लिए मंदिर सराय है, धरमशाला है, लेकिन सब हर वक़्त भरा रहता है | ज्वालाजी मंदिर की तरह, सब सराय धरमशाला हमेशा फुल | होटल के नाम पे एक या दो होटल | और ज्वालाजी की तरह ही, दंतेश्वरी मंदरि भी एक शक्ति पीठ है | 52 शक्तिपीठ में से एक, दंतेवाड़ा में ‘सती’ के दांत गिरे थे, ऐसा माना जाता है | और यह मंदिर चौदवीं सदी में बनाया गया था | और मूरत बनायीं गयी पत्थर से |

वो कहते हैं न पत्थर में  भी जान डाल देना, बिलकुल वही |

अगला पड़ाव – मंदिरों और तालाबों के शहर बारसुर – नक्सलियों के आमने सामने | 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *