हिंदुस्तान गाँव में बसता है | और हिंदुस्तान रेलगाड़ी में चलता है | फिर चाहे वो काँगड़ा कवीन हो या फिर ‘अमरकंटक एक्सप्रेस’ | ये समझने के लिए ट्रेन में बैठने कि भी जरुरत नहीं है | ये बात निज़ामुदीन रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म के एक कोने में आठ घंटे बिताने से समझ आ जाती है |
हमारी छत्तीसगढ़ यात्रा शुरू हुई दिल्ली से, जहाँ ट्रेन सात आठ घंटे लेट चल रही थी | और सबसे ज्यादा भीड़ मोबाईल चार्जिंग पॉइंट्स के आगे थी | वक़्त बदल रहा है, मोबाईल समाज के सबसे निचले तबके तक पहुँच गया है लेकिन ट्रेन आज भी लेट चल रही है , जाने ट्रेन कब बदलेगी |
जनरल डब्बे के सामने भीड़ लगी हुई है, हजार नहीं तो कम से कम सौ के हिसाब से | यु पी , बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओरिसा, चारों और से सब तरफ कि सवारियां खड़ी ट्रेन को घेरे हुए | थ्री ए सी अब नया ‘स्लीपर’ है, और स्लीपर आज भी वैसा ही है जैसा आज से पांच साल पेह्ले था, पांच साल पेह्ले ही मैंने आखिरी रेल यात्रा की थी – बंगलोर से दिल्ली ।
जनरल डब्बे के आज भी वही हाल हैं, या शायद पेह्ले से भी बदतर ।
बगल में एक स्पेशल डब्बा, रंग-बिरंगा सा, साथ खड़ी ट्रेन से ‘अटैच’ किया जाता है, जनरल डब्बे के ‘भइया’ लोग डरे सहमे से पटरियों पर, अगल-बगल में धकेले जाते हैं, और 20 रेलवे अधिकारीयों से घिरे हुए दो गोरे ‘से’ साहब-मेमसाहब टाइप के लोग रंग-बिरंगी कोच में चढ़ जाते हैं |
इधर वो रंग-बिरंगा डब्बा दो लोग को लेकर के निकलता है, इधर हमारी ‘अमरकंटक एक्सप्रेस’, जो कि आठ घंटे से लेट चल रही है, उसके ‘छूटने’ का शोर मच जाता है | पटरियों पर बैठे हुए लोगों को जैसे एकदम से बिजली का झटका लगता है, और देखते ही देखते, एक डब्बे में 100 – 50 लोग चढ़ जाते हैं | 10 -20 दरवाजे के बाहर ही हाथापाई करते हुए दिखते हैं। एक तरफ एक जनरल डब्बे मे 100-200 लोग, तो एक तरफ एक कोच मे दो लोग । और इस तरीके से छत्तीसगढ़ यात्रा की शुरुआत होती है । सात दिन हिंदुस्तान की यात्रा । रेलगाड़ियों, गाँवों, जंगलों, मंदिरों में बसने वाले हिंदुस्तान कि यात्रा |
पह्ला पड़ाव – अमरकंटक – नर्मदा नदी का उद्गम स्थल – नर्मदा नदी जिसे भारतीय सभ्यता मे गंगा नदी से भी उपर माना गया है । नर्मदा, जिसे माँ रेवा के नाम से भी जाना जाता है| और माँ क्यूँ कहा जाता है, ये बात गुजरात, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ के बियाबान जंगलों के गर्मी से तपते हुए ‘आदिवासियों’ से बेहतर कोई नहीं जानता |
क्युंकि अखिरी यात्रा भी स्लीपर मे की गयी थी, इस बार भी स्लीपर से जाने का सोचा गया । बिना किसी खास मुश्किल परेशानी के पेंड्रा रोड स्टेशन पहुंच गये । अब सस्ती सवारी ढुंढ्ने का काम शुरु किया गया । पेंड्रा रोड स्टेशन से अमरकंट्क मंदिर कि दूरी 35 km है| वैसे तो पेंड्रा रोड से अमरकंटक तक शेयरिंग गाडी चलती है लेकिन गाडी तभी चलती है जब सवारियां लबालब भरी हों |
चुंकि हम सुबह सुबह ही जा पहुंचे थे, सुबह दस बजे तक इंतेजार करना बेवकूफी था, जांच पड़्ताल की तो मालूम पडा अपना खुद का आटो करने का मतलब था 500 – 600 रुपया खर्च करना । जोड़ तोड़ कर एक गाड़ी वाले को मनाया गया, सौ रुपये मैं । पेंड्रा रोड से लेकर अमरकंटक के बीच एक दो बार छत्तीसगढ़ राज्य आता है लेकिन फर्क नहीं महसूस होता क्यूंकि सड़क , हवा, जंगल, सब एक जैसा है, एकदम चकाचक| जाने से पहले सोचा था कि सड़कें नहीं होंगी, गाड़ियां नहीं होंगी, लेकिन सारा रास्ता हिमाचल के किसी भी नेशनल हाइवे से भी बढ़िया |
रास्ते में सफ़ेद वर्दीधारी बाबा लोग मिले, नंगे पाँव , महिला – पुरुष सब एक साथ | ये सब लोग नर्मदा कि परिक्रमा पे निकले थे, जैसे हमारे पहाड़ी लोग कैलाश कि परिक्रमा करते हैं, ये लोग नर्मदा कि परिक्रमा करते हैं | नर्मदा कि परिक्रमा चलती है ‘तीन साल तीन महीने और तेरह दिन ‘| गुजरात में अरब की खाड़ी (भड़ूच) से अमरकंटक तक – 2600 किलोमीटर लम्बी पदयात्रा |
अमरकंटक एक छोटा सा गाँव है, शायद मध्य प्रदेश का सबसे ठंडा गाँव | रहने के लिए बड़े से बड़ा होटल, सराय, सब मिल जाएगा | हिमालयन नदियों के बीच घूमने वालों के लिए नर्मदा एक चमत्कार से कम नहीं है | जहाँ बड़े बड़े ग्लेशियर हिमालयन नदियों को जन्म देती हैं, नर्मदा जमीन के भीतर से निकलती है | जहाँ अमरकंटक में ये नदी अपने बाल रूप में है, जबलपुर पहुँचते पहुँचते ये नदी इतनी वृहद् और विशाल हो जाती है कि सतलुज और रावी भी शरमा जाएँ |
अमरकंटक के आस पास कई मंदिर हैं, जो कि देखने योग्य हैं | यहाँ जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित पातालेश्वर महाशिव मंदिर , कर्ण मंदिर और एक पुरातन काल का सूर्य कुंड है | ये सब मंदिर नागर शैली में बनाये गए हैं, और इनका मंडप एक पिरामिड के आकार का है |
मध्य प्रदेश टूरिस्म ने जगह जगह अपने होटल स्थापित कर रखे हैं, और कई जगह तो ये होटल हिमाचल टूरिज्म के होटल्स को भी मात देते हैं | अमरकंटक स्थित हॉलिडे होम में एक कमरा 3700 रूपये मात्र |
जहाँ मेरा दोस्त जयपाल अपने दोस्त के साथ हॉलिडे होम में रुका, हम लोग जैन भवन में रुके, 500 रूपया – तीन लोग |
अगला दिन, धुआंधार फाल्स – जबलपुर – नर्मदा का विहंगम रूप और आकार |
बहुत ही दिलचस्प और मजेदार यात्रा संस्मरण है. अमरकंटक के इस रूप को देख कर अच्छा लगा.
Ravi Ji, dhanyawad! 🙂
hamare bharat ko janane ka ek bahetarin shrot
पर्यटकों के लिए अच्छी जानकारी