हमीरपुर का नाम रखा गया था राजा हमीर के नाम के नाम पर , और राजा होगा तो किला भी होना चाहिए| काफी खोज बीन के बाद किले का पता चला तो हम निकल पड़े कैमरा और मोटर-साईकिल उठा के | किला संसार चंद कि रियासत का किला था जिनका सबसे प्रसिद्द किला काँगड़ा में है| जगह का नाम तो राजा हमीर के नाम पर है लेकिन जो महल का किला है उसे संसार चंद -II ने बनवाया है, 1775 -1823 के आस पास | किले तक पहुंचना आसान काम नहीं है, क्यूंकि सड़कों का जो जाल है हमीरपुर में, वो बस किले कि तरफ नहीं जाता, बाकी तो सड़कों कि भूल भुलैयां है ये जगह| बड़े शहरों में गुम होना तो आपने सुना होगा, यहाँ हमीरपुर में भी गुम होने के बड़े किस्से हैं, हर मोड़ पे लिंक रोड है, इधर से घुसो उधर निकल जाओ, हर तरफ सड़कें ही सडकें, ग्रोथ से कभी कभी परेशानी भी हो जाती है|
खैर, किले तक पहुँचने के लिए मेन रोड छोड़ के अन्दर जंगलों में जाना पड़ता है, और सड़क से किला दिखता भी नहीं है | गाँव के बीच से एक छोटी सी (कुनाह) खड्ड है जो आपको किले तक ले जाती है, आस पास इक्का-दुक्का घर हैं और जंगल ठीक ठीक बड़ा है | साथ ही में एक पांडव शैली में निर्मित एक मंदिर है, कितना पुराना है कुछ कहा नहीं जा सकता| खड्ड पार करते ही सामने भगवान का द्वार दिख जाता है, भगवान का द्वार माने शमशान घाट, गाँव के लोगों कि मानें तो ऐसा “शानदार” शमशान घाट पूरे राज्य में कहीं नहीं मिलेगा| वैसे मेरे ख्याल से सुंदरनगर, मेरे गृह नगर का शमशान घाट बड़ा शानदार है, एकदम झील के किनारे, ठंडी हवा चलती है आग से गर्मी भी नहीं लगती लोगों को|
फिर जब राज ख़तम हो गए, राजाओं के भी और ब्रिटिश राज भी, तब यहाँ लोगों ने आना जाना शुरू किया, कभी घास के लिए तो कभी सोने के लिए| किले में कहा जाता है अथाह सोना दबा हुआ है मलबे के नीचे , जिसको निकालने के लिए लोग जाते है कुल्हाड़ी-फावड़ा लेके, लेकिन कभी गाँव के लोग पीट के वापिस भेज देते हैं तो कभी पोलिस आके धुलाई कर देती है, सोना है या नहीं , ये कहना मुश्किल है पर रहस्य पूरा रामसे ब्रदर्ज कि फिल्मों वाला है|
महल मोरियां जो कि इस किले का आफिशियल नाम है, इस किले में दो लड़ाईयाँ हुईं थीं, लड़ाई नहीं दो भीषण युद्ध| पहली बार तो गुरखों को राजा संसार चंद कि सेना ने मार भगाया लेकिन दूसरी बार की हार राजा जी के गले कि आफत बन गयी, राज पाट सब छूट गया इतनी करारी हार का सामना करना पड़ा राजाजी को| राजा संसार चंद का काँगड़ा किला (पढ़िए – मुसाफिर हूँ यारों पे) भी इस लड़ाई के चक्कर में गुरखों के हाथ लग गया, मुझे लगता है ये गुरखा राजा वही “अमर सिंह थापा जी ” है जिनका किला जलोड़ी पास में है (रघुपुर किला -जलोड़ी पास, पढ़िए)|
संसार चंद – II ने सुंदरनगर/मंडी के राजा इश्वर सेन को बंदी बनाके रखा था और गुरखे उनको भी छुड़ा ले गए अपने साथ| इश्वर सेन को संसार चंद ने बारह साल तक नादौन के अमतर (पढ़िए अमतर की कहानी) स्थित किले में बंदी बना के रखा, आठ साल और होते तो वीर-ज़ारा बन जाती| गाँव वालों कि बातों और किंवदंतियों पे गौर फरमायें तो पता चलता है कि महल मोरियां का किला पूरे छह महीने तक जलता रहा, इतनी आग में सोना बचा होगा, ये कह पाना जरा मुश्किल लगता है| मंडी की महाशिवरात्रि का भी इस किले से गहरा सम्बन्ध है|
राजा का वजीर एक मुसलमान था और आज भी उसके वंशज इस गाँव में रहते हैं| सबसे हैरानी कि बात ये है कि इस गाँव में एक भी राजपूत नहीं है, मतलब कि जब आग लगी और मार पड़ी, तो राजा जी अपनी सारी बिरादरी को साथ ले गए| वहीँ पास में एक गाँव है ताल, ताल और महल का नाम एक साथ लिया जाता है, जैसे कि हारसिपत्तन (पढ़िए रहस्यमयी नगरियाँ), ताल दो कारणों से फेमस है, एक वहां एक ताल (जलाशय) हुआ करता था जहाँ राजा के घोड़े बंधा करते थे| और दूसरा रूमी वैद, कहते हैं उसके हाथों में जादू था, हड्डी कैसे भी, कहीं कि भी, कितने भी एंगल पे टूटी हो, रूमी वैद उसको ठीक करने कि कुव्वत रखता था| पूरे हिमाचल में सिक्का चलता था रूमी वैद का, जो हमीरपुर में पले बढे हैं, २००० से पहले कि जेनेरेशन , उन सबने इन भाई साहब का नाम सुना है| अब शायद अल्लाह को प्यारे हो गए हैं, पर मैंने उनके जितना किसी और का नाम नहीं सुना है , उनसे ऊपर शायद डाक्टर बंगाली ही होंगे , नो डिस-रिस्पेक्ट |
जंगलात महकमे के लोगों कि ड्यूटी लगती है उधर, ताकि लोग लकड़ी, घास न ले जाएँ सरकारी जमीन से, बस किले को बचाने के लिए कोई नहीं आता शायद, मुझे ये नहीं समझ आता कि मुझे किले देख के ख़ुशी होनी चाहिए या दुःख? किले बनवाए जाते थे लोगों से, बिना मशीनरी के, किले तक पैदल चढ़ने में हवा निकल जाती है, तो जो मजदूर सामान लेके जाता था ऊपर, पत्थर, लकड़ी, पालकियां, उनका तो आधा जन्म ही ढुलाई में निकल जाता होगा, साला अजीब ही हिसाब किताब है जिंदगी का, किसी न किसी को तो मजदूरी करनी ही पड़ती है, चाहे राजतन्त्र हो या प्रजातंत्र|
हमारी सभ्यता, इंजिनीयरिंग के प्रतीक हैं ये किले या बेवकूफी के, मैं कुछ समझ नहीं पाया हूँ इस बात को|
रजवाड़े ख़तम हो गए. किले टूट गए सारे पर मजदूर आज भी मजदूर ही हैं , तब भी पत्थर ढ़ोते थे, अब भी पत्थर ढोते हैं|
Thanks for stopping by at my blog and I am a big fan of Himachal Pradesh.
Nice description. I have been to Sundernager years ago. It was a tiny little town then, in 1974 or 5. Wonder what it is like now.
Lucky you.. to be able to travel so much.
Forts are so intriguing. I like the story you were able to dig up.
I enjoyed your trip to Gadh.
एक और हिंदी ब्लॉग ! अच्छा लगा |
"ये पगडण्डी किले तक नहीं जाती है, रास्ता भटकना आसान बात है" 🙂
Nisha – Le Monde-A Poetic Travail
I got my bone ailment treated from Dr.Roomi Ram Thakur ji of Taal in 1994.What a wonderful man he is.He used to treat complicated bone fracture/dislocation or any sort of problem with mustard oil,bamboo shaft and crab bandage.Sh.Thakur ji a thorough gentleman down to earth used to treat patients free of cost.What a noble soul sent by the Almighty on the earth to serve aggrieved persons.
लेकिन एक छोटा सा गाँव हैं यहाँ महल, और वहां है राजाजी का किला.
:*
Bada aachha likha hai Tarun!
🙂
behatreen sir…
I got Treatment two times from Dr. Roomi in my Childhood. Thnks To him.
Dear Tarun
Excelant reserach, my inlaws house is in mahal morian, and i studied in sundernager. I love himachal and love to roam like you, but the question of bread and butter comes ahead. Please give me your telephone number as I also want to go on motorbike tour with you. Want to see interior Mandi Bilaspur and all distridt of Himachal
Hello Rajeev, Thanks for your comments. I also belong to SunderNagar.
(y)
maharaja hamir singh ji mare father ke father ke father ke father thae
Great post, I have been there and yes , government is working totally nothing in order to maintain the glorious fort.
Raja Hamir Chand was the ruler of erstwhile Trigarta kingdom from 1700-1747 AD who built the fort
of Hamirgarh(atop the hill on right side of ‘hathli’ khad) thus the district Hamirpur is named after him.
The “Mahal-Moriyan” fort which is only known for the two famous battles is also the only jagir which
was offered to the legitimate inheritor Ranvir Chand(son of Aniruddh Chand and grandson of Maharaja
Sansar Chand 2) who was forced to settle in the nearby village Karha(then known as karheen) along with
his brother Pramod Chand due to the fury of Maharaja Ranjeet Singh!