कहाँ जाएगा भईये? , एक तंग पुल पे बस रुकी तो कंडक्टर भाई ने सड़क किनारे बैठे मजदूरों के झुण्ड से एकदम अकड़ते हुए हिटलर स्टाइल में पूछा |
साहब हमीरपुर जाऊँगा , सड़क पे खड़े “इन्सान” ने कहा, सामान है काफी और बच्चे भी हैं, ले चलोगे? उस इन्सान ने अपने बीवी, बच्चों, भाई-बेहेन, और रिश्तेदारों की तरफ इशारा करते हुए कहा, कहा क्या मर्सीप्ली डाली कंडक्टर के आगे | सामान में उसके टीन, पत्रा, बाल्टी, टोकरी, बोरी, और काफी कुछ डेली यूटिलिटी का सामान था, जिसको एक बार में इक्कठा करो तो एक झोंपड़ी बन जाए, इन शोर्ट पूरा घर का सामान लेके चले थे वो मजदूर, जिनको अक्सर देश के नोर्थ इंडियन भाग में भईये के नाम से जाना जाता है |
बस खाली थी और सामान रखवा दिया गया छत पर, कंडक्टर ने ठीक गाली गलौज की उनके साथ और वो जैसे तैसे सुनते हुए बस में सवार हो ही गए, विद फॅमिली, न जाने कब से खड़े थे सड़क पे, अक्सर उनको बिठाया नहीं जाता बसों में |
मैं आखिरी सीट पे बैठा था और धीरे धीरे मैंने सारी बस को भरते देखा, एक बच्चा, दो बच्चे, तीन बच्चे, अनेक बच्चे, अत्याधिक बच्चे, बच्चे ही बच्चे, नंगे फुंगे, अधनंगे, सबको खिड़की वाली सीट चाहिए थी तो एक सीट पे चार-चार बैठ गए, बच्चे अलग, माँ बाप अलग | दो औरतें थी, दो मर्द, और आठ बच्चे, किसके थे क्यूँ थे, ये नहीं पता पर ठीक मेहनती मजदूर होते हैं ये लोग, गरीब होते हैं पर मेहनत से नहीं कतराते, दिन रात लगे रहते हैं |
तो अब बस में कुल मिलाके सोलह सवारियां थी, बस का आंगन ठीक हरा भरा लग रहा था बच्चों की चें-पें से | कंडक्टर ने हडकाया उन सब को, उनके माँ बाप को भी क्यूंकि वो सब अपना अपना किराया दे रहे थे, टेन रूपी ईच के हिसाब से चालीस रुपये | कंडक्टर को एकदम से गुस्सा आ गया और उसने कहा की ये बच्चे मेरी जायदाद के हैं?इनका किराया कौन देगा | इसी बीच एक बच्चा खिड़की की सीट ढूंढता हुआ कंडक्टर के पैर पे चढ़ गया और कंडक्टर ने उसकी माँ-बेहेन एक कर दी | बस का माहौल एकदम से रंगीन से ब्लैक एंड व्हाईट हो गया, इससे पहले की मैं कुछ कहता, बच्चों की माँ ने उनको डांट डपट के सारी सीटें खाली करवा दी और वो बारह लोग दो सीटों पे ऐसे फिट हुए की क्या बताऊँ, ऐसा लग रहा था जैसे discovery पे एक्सट्रीम इंजीनियरिंग प्रोग्राम चला हुआ हो |
किराया कंडक्टर ने पूरा वसूला, चार पूरी सवारी का और आठ आधी सवारी का | फिर धीरे धीरे बस में भीड़ बढ़ने लगी, पढ़े लिखे [जैसे दिखने वाले] लोग चढ़ने लगे, डियो लगाके लौंडे-लौंडियाँ भी चढ़े, सबने उन मजदूरों को देख के शकल बना ली, और बस के एक कोने में इक्कठे हो गए, मजदूरों से ठीक दूर | एक एवियटर चश्मा लगाये हुए भाईसाहब भी चढ़े, उन्होंने तो चढ़ते ही गाली गलौज शुरू कर दी और मर्द मजदूरों को उठा के जीन पेंट पहनी हुई लड़कियों को बैठने की पेशकश दे दी, ये बात और है की उन सीटों पे दो बूढी अम्माएं एकदम से काबिज़ हो गयी, पलक झपकते ही जैसे घात लगाये हुए बैठी हों |
पूरे रास्ते लोग पहाड़ी में उन भईय्यों को, उनके बच्चों को, और यहाँ तक की उनकी पूरी कौम को गाली देते रहे | गंदे भईये, अनपढ़ भईये, चोर भईये, इत्यादी इत्यादी | फिर एवियटर वाले भाईसाहब को एक फोन आया, ठेकेदारी का काम था उसको, उसको कुछ भईये चाहिए थे अपनी साईट पे, वहीँ उसने उसी आदमी से बात की जिसको उसने सीट से उठाया था, और डील फिक्स हो गयी| कंडक्टर को कह दिया गया की किस जगह उन भईय्यों को उतरना है |
मैं सोच में पड़ गया की आपका घर बनाये भईया, सड़क बनाये भईया, पत्थर तोड़े भईया, कपडा बुने भईया, गटर खोदे भईया, शादियों में स्टेज सजाये भईया, रिक्शा चलाये भईया, पान खिलाये- बीडी पिलाये भईया, यहाँ तक की भगवान की मूर्तियाँ तक बनाये भईया, पर बस में सीट मत दो उसको | क्यूंकि साला भईया है | पढ़े लिखे, इंजिनियर , डाक्टर और MBA लोग भी भईये को भईया ही मानते हैं क्यूंकि वो बिना पढ़े लिखे, बिना किसी स्किल सेट के कोई भी काम कर लेता है, मूर्ती बनवा लो, फ़ौंडेशन खुदवा लो मकान की, फर्नीचर बनवा लो, कपडे सिल्वा लो, भईया सब करेगा| न उसको अकड़ है डिग्री की और न ही कोई ईगो, उसको बस रोटी चाहिए खाने को |
मैंने सुना की जबसे नितीश कुमार ने अपना भाइयों को वापिस अपने “देश” बुला लिया है, तबसे हिमाचल, पंजाब , हरयाणा, और जम्मू में कई लोगों की हवा टाईट हो गयी है, ठेकेदारों को मजदूर नहीं मिलते, फैक्ट्री में लेबर नहीं मिलती, भईये जा रहे हैं अपने देश, आप बैठो अपनी बसों में चौड़े होके | घरों में लोग खुद ही ईंट समींट और सरिया ढ़ो रहे हैं क्यूंकि भईया चला गया अपने देश |
मैंने एक हिसाब लगाया है की जब तक आप अपने घर से, अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर नहीं निकलते, आप दूसरी विचारधारा का सम्मान ही नहीं कर सकते | उस कंडक्टर की कुछ खास गलती नहीं लगती मुझे, उसको हमीरपुर – जाहू रूट पे चलना है सारी उम्र, उसको नहीं पता की भईया ऐसा क्यूँ है, काला, बदबूदार, और अजीब सा| लेकिन जिस दिन वो बाहर निकलेगा, दिल्ली में रहेगा, बंगलौर में डोसे खाएगा तीन टाइम , ऑटो वालों से दिमाग लगाएगा दिल्ली में, और मुंबई में मराठी माणूस से भिड़ेगा, तब उसे पता चलेगा की साला भईया भी रिस्पेक्ट ड़ीसेर्व करता था [है] |
बचपन में हम इन्हें बागडिया कहते थे, मतलब अभी पता लगा है कुछ महीने पहले की बागड़ी एक झोंपड़ी को कहते हैं और जो उसमें रहे वो बागडिया कहलाता है, हमें बचपन में लगता था की ये सब चोर होते हैं, क्यूकि एक बार कोई गटर का ढक्कन चुराते हुए पकड़ा गया था कबाड़ी को बेचते हुए, उसको सारे मोहल्ले वालों ने खूब धोया, तबसे मुझे यही लगता था की ये सब चोर हैं, पर बचपन में ही अक्ल आ गयी वक़्त के साथ|
एक भाईसाहब थे, खगेश्वर नाम था उनका, उनके साथ खूब क्रिकेट खेला मैंने छठी क्लास तक , झोंपड़ी में रहता था वो , रणजी खेली थी उसने शायद हिमाचल की तरफ से, तब मुझे समझ आई की सब भईये चोर नहीं होते |
सबको अपने अपने वक़्त से अक्ल आती है, किसी को जल्दी, किसी को देर से|
आपको आ गयी?
awsome……respect_/\_
भाई मजा आ गया क्या पकडा है आपने मगर इन भईया का दर्द समझने की ताकत सभ्य समाज मे कहा उन्हे तो बस नाक भौं सिकोडने से फुर्सत कहां……….
Round of applause for Biharis…i hv a soft corner for biharis esp. lalooji…kabhi sune ho parliament main 🙂
भईये जा रहे हैं अपने देश, आप बैठो अपनी बसों में चौड़े होके….sahi hai…
A very engaging article… but to change the image that has been portrayed over the years will take time to change..More so kisi ke bhaiya hone se dikkat nahi but unki aadaton se zaroor hoti hai.. na nahana.. gande rehna…. jahan jana wahan gandagi failana… and this does not hold true for all.. but yes a majority of this population..Lots of social implications. but yes defintly connot be attributed to a community in particular.
#Test Plugin
Awesome writeup Tarun!!
Beautiful. Soul stirring. We just ignore the fact that they are just tryin to earn their livelihood. Though i respect bhaiyyan a little more.wo kaam bhi karti hai, bachche bhi paalti hai ( ek pet mein ek god mein aur ek do paas mein dhool mein khel rahe hote hain nange paanv nange badan.)aur roz maar bhi khaati hai and still she is up there right by his side with the load on her head.respect.
Now this was heartfelt buddy. Amazing.
Tarun you surely deserve a big cheers!!
sabhya samaj ko problm islie h kyuki bhaia apni adto se nhi sudrte… n depndin on majority ek tag dia jata h.. wahi in logo ko mil rha h.. nt al bt majority m ese h jo hrkto se baj nhi aenge.. lik bewkuf bnana.. gnde rhna.. mne bhut se bihar n up walo se deal kia.. bt still muje abhhi bhi biharis k lie koi b sympathy nhi h… dey jz want to use u.. n knwn fr der drty politics n dirtness….. baki har koi ek sa nahi hota….