अड्यार (चेन्नई) से मनाली २६८० किलोमीटर दूर है, और बड़े से बड़ा घुमक्कड़ भी ऐसी यात्रा करने से पहले कई बार सोचेगा की मोटर-साईकिल ले के जाऊं, या दिल्ली/चंडीगढ़ तक जहाज ले लूँ, और वहां से आगे मोटर-साईकिल| लेकिन सड़कों पे चलते बड़े बड़े ट्रक इस यात्रा को बड़ी आसानी से पूरा कर लेते हैं |
कोलकाता से कश्मीर, चेन्नई से मनाली, सूरत से कटक, बेंगलुरु से जयपुर, ट्रक अक्सर इन यात्राओं पे चलते हैं, एकदम रेगुलर शेड्यूल से, बिना रुके, बिना थके| मेरे पड़ोस में एक भाई साहब रहते हैं, मैं अपने आप को बड़ा घुमक्कड़ समझता था, पर सिर्फ तब तक जब तक मुझे ये मालूम नहीं पड़ गया की वो भाईसाहब, तीन बार लेह जा चुके हैं, दो बार बेंगलुरु, एक दो बार चेन्नई, वो भी लोडेड गाड़ी के साथ | जयपुर से संगमरमर लाना उनके दायें-बायें हाथ का खेल है, ट्रक उठाओ, एक दिन रात में दिल्ली , उससे अगली रात में जयपुर, और दो रात बाद वापिस मंडी, १४०० किलोमीटर एकदम ओवरनाईट(s) में फिनिश| मैं एक बार गया था मोटर साईकिल से, मेरी हवा पूरे एक महीना टाईट ही रही थी|
आपने देखा होगा की कैसे आपको ट्रक वाला हाथ के इशारे से पास देता है, इंडिकेटर दिखता भी नहीं इतने बड़े ट्रक में| शायद पहाड़ों में एक हाथ बाहर निकाल के पास देने की आर्ट भी ट्रक ड्राइवर्स ने ही शुरू की है , जल्दबाज़ ड्राइवर्स को ट्रक वाले हाथ दिखा के रोक भी लेते हैं कई बार की भाई रुक जा आगे मौत का सामान है , पर बहुत छोटी बात है ये, याद नहीं रहता क्यूंकि जल्दी बहुत है हम सबको, जाने, आने, और पहुँचने की |
सरिया, समींट, लोहा, पत्थर, आटा, चावल, मक्की, सेब, मशीनरी, रोड रोलर, पॉवर प्लांट्स की टरबाइन, और हजारो लीटर तेल , भाई आर्मी के ट्रक तेल से चलते हैं, ज़ज्बे और हिम्मत से सिर्फ लड़ाई होती है, बाकी सब के लिए तेल पैसा लगता है | ये सब ट्रक वाले ही लेके जाते हैं क्यूंकि पहाड़ों में रेल तो चलने से रही, चाइना में कहानी दूसरी है, पर इंडिया में तो ट्रक वाले ही माई बाप हैं| हिमाचल में अगर पॉवर प्लांट ना हो तो हम सब लोग सिर्फ आलू, मटर और सेब उगायें, और पॉवर प्लांट की मशीनरी ट्रक ही लेके आते हैं यहाँ| किन्नौर, मनाली, कुल्लू, रामपुर, रोहडू, सब जगह ट्रक ही चलते हैं, कितनी ही बड़ी मशीनरी हो, ट्रक वाला ड्राइवर सब लेके आता है|
नेशनल हाइवे 21 पे अक्सर आपको ट्रक दिख जायेंगे, सड़क के किनारे खड़े हुए, और कई बार सड़क के बीचो-बीच| और रही बात सोने की, तो कभी ट्रक के ऊपर से ड्राइवर निकलते हैं, कभी नीचे से| सर्दियों के दिनों में एक अधिया लगाके सो जाओ ऊना नंबर वन का और गर्मी सर्दी सब बराबर| कई बार सड़क पे आपको दिखेगा की सुबह सात बजे ट्रक चला है आपसे आगे मटकता हुआ, कभी इधर-कभी उधर, क्यूंकि ड्राइवर चलते ट्रक में ब्रुश कर रहे होते हैं, ब्रुश यू सी – दन्त मंजन|
देश के लगभग सभी राज्यों में ट्रक एक ही टाइम पे चलते हैं, शाम पांच बजे से सुबह सात बजे तक, दिन में दिक्कत होती है आम जनता को उनके चलने से| वैसे आम जनता को हर एक चीज़ से दिक्कत होती है, लेकिन ट्रक के चलने से ज्यादा दिक्कत होती है| किसी ट्रक के पीछे चलना किसी भी गाडी वाले के लिए सबसे बुरा सपना होता है | ट्रक अगर लोडेड हो तो क्या कहने, चींटी की चाल से चलते ट्रक के पीछे चलने में जो फ्रस्ट्रेशन और खीझ होती है उसका कोई मुकाबला नहीं है | पर ये ट्रक अक्सर कई बार नैय्या भी पार लगा देते हैं, अक्सर लोग किसी ओवेरटेक करते हुए ट्रक के पीछे अपनी गाडी चिपका देते हैं, रास्ता ट्रक साफ़ करता है और आप की भी निकल पड़ती है, मुश्किल आने पे साइड का इंडिकेटर जलाओ और दांत फाड़ते हुए अपनी लेन में घुस जाओ | कुछ लोग ऐसे मौकों पे सामने से आती गाडी के ड्राइवर से नजर नहीं मिलते, भाई चलती सड़क पे अपनी गलती मानें या जान बचाएँ| हिमाचल में जो टूरिस्ट आते हैं, वो तो बस ट्रक के पीछे लगके ही पास लेते हैं, कभी कोई ट्रक दिखे आगे से आता हुआ, तो जान लेना की उसके पीछे कम से कम दो गाड़ी तो जरुर छिपी होगी, मौका ताड़ के आगे निकलने की फ़िराक में| और गाड़ी पे पंजाब – हरयाणा का नंबर हो, इसके चांसेज काफी होंगे |
मैं एक दफा एक ऐसे ही जांबाज़ ट्रक ड्राइवर से मिला . चेन्नई से लेह जा रहे थे भाईसाहब, पूरा एक महीना हो गया था घर से निकले| आर्मी का कुछ सामान ले जा रहे थे, कह रहे थे, टूटी फूटी हिंदी में, कि साहब जान जाती है आर्मी वालों को देश को बचाने में उनके लिए सब करेंगे| और सबसे इंटरेस्टिंग बात ये थी की चेन्नई में भी ट्रक ड्राइवर स्पेशल गाने बनते हैं, चमकीला स्टाइल [अमर सिंह चमकीला: द लेजेंड] | बड़ी अजीब बात है की इस देश में कोई एक भाषा नहीं है फिर भी चेन्नई से चल के एक अनपढ़, हिंदी ना जानने वाला ट्रक ड्राइवर मनाली पहुँच जाता है, हर साल, उसको किसी भाषा की जरुरत नहीं पड़ती|
मैंने सोचा कि जिंदगी तो ट्रक वाले कि भी किसी आर्मी मैन से कम नहीं है, महीनों घर से बाहर, कोई खोज नहीं,कोई खबर नहीं| और अगर किसी खाई में लुढ़क जाओ तो महीनों लग जाएँ लाश निकलने में, कई बार लाश मिलती भी नहीं, और मिलती भी है तो लोकल पोलिस वहीँ लोकल मुर्दाघर में मामला निपटा डालते हैं, इलेक्ट्रिक चेयर पे बिठाके, न लकड़ी न धुआं, न पंडित, न पुजारी, लापरवाही का केस अलग चलता है|
बस एक दिक्कत है, जब से रतन टाटा और अशोक लेलैंड एंड कंपनी ने पॉवर स्टीरिंग लगवा के दिए हैं ट्रक में, कुछ जांबाज़ ड्राइवर, लोडेड ट्रक को मारुती स्विफ्ट समझ के चलते हैं, बस वहीँ थोडा सीन गड़बड़ हो जाता है| एक बार मेरे ऊपर चढ़ गया था ऐसा ही एक शूरवीर, तब मुझे अपने पिताजी की एक बात याद आ गयी की जिस भी ट्रक पे एच पी – ११ (HP-11) नंबर लगा हो उससे पंगा नहीं लेने का| मैंने लिया और पाया गया, आप ध्यान रखना, HP-11 का मतलब है द रियल रोड किंग, न पास मांगने का, न ही हीरो बनने का|
हर साल लेह जाने वाले ट्रक खाइयों में समा जाते हैं, बीसियों ट्रक, जो इंडियन आर्मी का सामान लेके जाते हैं | लोडेड ट्रक को सीधे रोड पे चलाना ही मुश्किल का काम है, हिमालय की वादियों में तो एक टांग पे तपस्या करने जैसे है| चार-पांच फीट कीचड़ और जल्दबाज़ टूरिस्ट ट्रक वालों को अक्सर घुसा दिया करते हैं| इस साल भी कई ट्रक रोहतांग में कई कई दिन फंसे रहे और ५-६ तो गिरे पड़े थे, दो सौ मीटर गहरी खाई में|
पर आर्मी वाले अलग हैं, देश के लिए मरते हैं भाई, ट्रक वाले ऐसे ही मर जाते हैं|
सात से पांच में अँधेरा होता है ना, और अँधेरे में कुछ ख़ास दिखाई नहीं पड़ता|
P.S. अड्यार (चेन्नई) में रोयल एनफील्ड की फैक्ट्री है|
बेहतरीन पोस्ट ….इसे पढ़ के मेरा ट्रक वालों के प्रति नज़रिया बदल गया ….कितने जीवट भरे लोग होते हैं यार ….फिर भी हम इन बेचारों को हिकारत की नज़र से देखते हैं ….जैसे सड़क तो हमारे बाप की है …..ये कहाँ से आ गए ????????? आज सोचा देश चला रहे हैं ये बेचारे ……..दो दिन न चलें तो औकात पता लग जाए अपनी …..हम लोगों को …….टमाटर 100 रु किलो खाने पड़ेंगे ………वाह ….बेहतरीन पोस्ट …….जिंदगी से जुडी ….इसे कहते हैं असली लेखन …..जो जिंदगी से जुड़ा हो …….
trucks and these drivers are the lifeline in most parts of our country especially hills.Have seen a lot of drivers who used to drive from Bangaolre to Nalagarh in 4-5 days.
Add HP 12 to ur list too.
overall truck drivers deserve respect
वाह भाई, बडी मेहनत की इस लेख में, एक बार ऋषिकेश से दिल्ली आते हुए हरिद्धार में ही अंधेरा हो गया था, अरे नहीं, चले ही रात के दस बजे थे, फ़रवरी का महीना था, मैंने अपनी बाइक ट्रक के पीछे-पीछे लगाकर मेरठ तक आया था। जिससे मुझे ठन्ड व आमने के वाहन से बचाव हुआ था।
आर्टिकल की बेयूटी समझो या मेरी आँखों की थकान, आँखों से पानी निकल गया…. पर आर्टिकल कतल-ए-आम है हमेशा की तरह …… envy
————————bon jovie
awesum post…
Too good hai Goliji…… 🙂
Esp the HP 11 wala scene is so true :))) Awesome :))
Another simple yet profound post!
हमेशा की तरह बेहतरीन भाई| यहाँ मैं एक और चीज़, जिसने मेरा ध्यान कईं बार खींचा है, और ट्रक चालकों के प्रति सम्मान और बढाया है, उस पर प्रकाश डालना चाहूँगा | रात को कभी सड़क पर बाईक चलते हुए ध्यान देना, आपको कार चालकों से ज्यादा ट्रक चालक "दिप्पर" का प्रयोग करते हुए दिखेंगे | इसे देख कर तो यही लगता है की ट्रक चालक, पढ़े लिखे कार चालकों से कहीं ज्यादा सभ्य हैं |
HP -११ हिमाचल के दाड़लाघाट नाम कि जगह का registration नंबर है, वहां एक cement फैक्ट्री है और हर घर में एक ट्रक रहता है उधर | ट्रक वाले मालिक अमीर हें तो ट्रक के ड्राइवर लोग सड़क को अपने बाप कि मान के चलते हें , कि उड़ा दो किसीको भी, मालिक खुद सेट्टिंग कर लेगा |
एक बार मेरे ऊपर चढ़ गया था ऐसा ही एक शूरवीर…
ट्रक पर बहुत अच्छा लेख लिखा, पर कभी ट्रक ड्राईवर से मिल कर उन की ज़िंदगी के बारे मे जानने की कोशिस करो और फिर इतना खूबसूरत लेख लिखो?
अरे वाह । आप तो कमाल का लिखने लग गये ।.
बेहतरीन लिखा है।