ड्राइवर, साब आपकी जात क्या है? ये सबसे पहला सवाल था, जिसका उत्तर देना मुझे हार्गिज़ भी पसंद नहीं है, पर थकान और सेव एनर्जी प्रोटोकॉल के तेहेत मैने उसको कहा, शायद बनिया|
नहीं
उमर कितनी है आपकी?
२५, २६ का अक्टूबर में, मुझे एकदम से अपने बड़े और बूढ़े होने का आभास हुआ|
आपका तो दाम लगेगा फिर|
मतलब?
आपको नहीं पता? बानिए अपने पढ़े लिखे लड़कों का दाम लगाते हैं पंजाब में, अच्छा हो दिखने में तो कम से कम १५-२० लाख तो कहीं नहीं गया और अगर सरकारी नौकरी हो तो २५ लाख से उपर की बात बनती है|
आपकी सरकारी नौकरी है?
नहीं मेरे पास नौकरी ही नहीं है, मैने कहा, और ये दाम लगने की बात में एकदम से मेरा इंटेरेस्ट जाग गया| २०११ में भी अगर इंसान बिकता है तो सही में हमारे देश का ग्रोथ रेट ९ पर्सेंट से ज़्यादा है, नेगेटिव ९ पर्सेंट प्रतिवर्ष|
चलो कोई बात नहीं, आपके जीजाजी ने बताया की आपके पिताजी पी डब्लू डी से एक्सेन रिटाइर्ड हैं, आपके पास तो वैसे भी ठीक बांग्ला कोठी होगी, आपने इंजिनियरिंग भी कर रखी है, आपको मिल जाएगा ठीक पैसा|
नये मकान में ना सिलिंडर था, ना चूल्हा, माइक्रोवेव था जो मुझे चलाने आता नहीं था और जीजाजी का सारा ध्यान गत्ते की पेटियाँ खोलने और पैक करने में था, अगली बार की ट्रान्स्फर में काम आ जाएगी, ऐसा उनका मानना था |
वहाँ से हमने रुख़ किया हॉस्टिल की मेस की ओर, हमारे इंजिनियरिंग कॉलेज में हमें सिर्फ़ खाना होता था, और मेस वालों को गालियाँ देनी होती थी| बर्तन, ग्लास, स्पून, चीनी, सब टेबल पर मिल जाया करता था, मैं उसी मोड में मेस के अंदर गया|
सुनते हैं की कॉलेज से ज़्यादा रॅगिंग नवोद्या में होती है, मार पिटाई नहीं होती पर सीनियर की प्लेट धोना, कपड़े धोना, सुबह उठाना, और काई तरह के काम करने पड़ते हैं वहाँ| मेरा एक बहुत ही अज़ीज और अजीब दोस्त हुआ करता था, एकदम दिल के करीब टाइप में, वो इसी नवोद्या से पढ़ा था, क़िस्से सुनाया करता था अपनी रॅगिंग के कैसे उसको एक सीनियर ने रात के एक बजे पानी लाने के लिए कहा, नींद से जगाके| उसने बाथरूम से पानी लाके उसमें अपना पेशाब मिला दिया और सीनियर को पिला दिया| एक सड़क हादसे में उसकी मौत हो गयी, पाँच साल पहले, या शायद ६ साल पहले, अब तो याद भी नहीं पड़ता, सिर्फ़ उसकी कही हुई बातें याद आती हैं|
खैर, उस छोटे से बच्चे से से मैने उसका नाम, उसके गाँव का नाम पूछा|
क्यूँ आ गये घर छोड़के? मैने कहा उससे
घर वालों ने भेज दिया, मैने टेस्ट दिया था, टेस्ट निकल गया, मैं इधर आ गया| पहले स्कूल से घर आकर खेत में काम करता था, अब फूटबाल खेलता हूँ इधर|
अच्छा लगता है इधर?
हाँ, बहुत अच्छा| सिर्फ़ अपना काम करो, कोई भैंस नहीं, कोई खेत नहीं, अपना खाओ, अपना खेलो, अपना पढ़ो| हिन्दी बोलना सीख रहा हूँ, वहाँ गाँव में सब पहाड़ी बोलते थे, मास्टर भी और बच्चे भी, यहाँ तो लोगों को अँग्रेज़ी भी आती है|
बच्चा काफ़ी एनर्जेटिक था और वो अभी तक मुझे अपना टीचर ही समझ रहा था| इतनी छोटी उमर में, इतने कॉन्फिडेन्स से, मैं हिन्दी बोलना सीख रहा हूँ,ऐसा कहते हुए मैने कभी किसी को नहीं सुना|
कौन सी क्लास में पढ़ते हो?
सातवीं|
खाना कैसा लगता है इधर का?
खाना अच्छा है यहाँ, वहाँ गाँव में खाना ठीक नहीं बनता, मेरी मा नहीं है, दादी बनाती है खाना, दिखता नहीं है दादी को, यहाँ खाना अच्छा है|
अक्सर लोगों को मेस का खाना पसंद नहीं आता, और ये बच्चा काफी खुश था क्यूंकि सब लोग सिर्फ स्वाद के लिए नहीं खाते |
क्या बनोगे बड़े होकर? मैने यूँ ही पूछ लिया|
इंजिनियर बनूंगा, यहाँ हमीरपुर में बहुत बड़ा कॉलेज है, वहाँ जाऊँगा|
सिर्फ़ इंजिनियर ही क्यूँ बनोगे?
क्यूंकी इंजिनियर गाड़ी बनाता है, मुझे भी गाड़ी बनानी है|
आप हमें पढ़ाने के लिए आए हो?
नहीं. ऐसे ही आया हूँ| किसीसे मिलने|
थोड़ा मायूस होके वो बच्चा अपनी प्लेट उठाके चला गया अपने होस्टेल की तरफ, लाइन में सबसे पीछे खड़ा होके| एक मुलाकात में सातवीं का बच्चा किसी अजनबी के साथ इतना खुल के बात करेगा, मैने सोचा नहीं था|
यही एनर्जी उसकी इंजिनियरिंग तक जाते जाते मेनटेन रहेगी? क्या इंजिनियरिंग उसकी एनर्जी को सही दिशा में ले जाएगी? और सबसे बड़ी बात, क्या उसको एक ऐसा टीचर मिलेगा जो उसको बातें सुने समझे, ना की सिर्फ़ उसे इंजिनियरिंग ही पढ़ाए?
काश मैं भी उस बच्चे की तरह निडर होता और उम्मीद रख पाता की हाँ उसकी इंजिनियरिंग उससे सही में गाड़ी बनवा देगी|
पार्ट टू – One Day in the Life of a Navodya Teacher
gud sir ji