चलना है या नहीं?, हाँ या ना में जवाब देना, यहाँ भूमिका मत बांधना, येस और नो?
मेरे पाँव में चोट लगी है, अगले हफ्ते 75 -300 लेंस भी आ जाएगा, तब चलेंगे, जय पाल ने एक नीचे का ‘सुर’ लगाते हुए कहा, जोकि मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आया |
हाँ या ना, मैंने आँखें फाड़ कर कहा |
देख लो |
और इस तरह मैंने निश्चय किया क़ि मैं अकेला ही जाऊँगा, जिद एक बीमारी है जो आदमी से अक्सर ‘काम’ करवा देती है, सही गलत का मालूम नहीं पर काम जरूर हो जाता है |
अब हिमाचल के सबसे ज्यादा ढलान वाले पास पे जाना हो, वो भी अकेले , तो डर तो लगेगा ही, तो मैंने सोचा क़ि बरोट के honorary citizen , सन्नी से बात क़ी जाए | फोन किया तो पता चला क़ि महाशय क़ी IAS क़ी परीक्षा है शिमला में| पर अब मुझे कोई बलि का बकरा चाहिए था, और सन्नी से अच्छा बकरा कोई हो नहीं सकता था क्यूंकि ऐसी जगह जाने के लिए, वो एक नहीं हजार बार कट सकता है, एकदम ख़ुशी से, अपनी मर्जी से | सन्नी को मनाया गया, वो पहले ही मान चुका था, बस उसको भरोसा दिलाना था क़ी भैय्या तुम मान गए हो |
तो कार्यक्रम बन गया कि अगली सुबह ६ बजे सवारी निकल पड़ेगी ताकि हम दोपहर – दोपहर में जलोड़ी पास पहुँच जाएँ | शाम तक कार्यक्रम फिर बदल चुका था क्यूंकि सन्नी के अन्दर देशभक्ति जाग उठी थी और वो collector बनने के ख्वाब देखते हुए ना जाने का इरादा कर चुका था |
खैर, जिद है तो जिद है, मैंने सोचा कि अब अकेले ही निकला जाए, सुबह उठते ही घोड़े पे सवार हुआ और निकल लिया मंडी-सुंदरनगर कि हसीन वादियों कि ओर | गुस्से और जिद में मेरी स्पीड कुछ ज्यादा ही तेज़ हो गयी थी ओर १०० किलोमीटर का सफ़र मैंने डेढ़ घंटे में पूरा कर लिया | वहां मुझे एक आशा कि किरण और दिखी ओर मेरा एक दूसरा मित्र, मैंने उसकी बलि लेने का प्रोग्राम बनाया| इस तरह से मुझे एक दूसरा साथी मिल गया, जो मेरे साथ घूमने चले , लेकिन तब तक कहानी में एक ओर ट्विस्ट आ चुका था ओर सन्नी की देशभक्ति उड़ चुकी थी ओर अब वो ‘into the wild ‘ बनना चाहता था , तो इस तरह से जहाँ मुझे अकेले जाना था, अब तीन सवारियां तैयार हो चुकी थी, दो घंटे बाद सन्नी महाशय सुंदरनगर पधार चुके थे, ओर हम लोग निकल पड़े हिमाचल के सबसे ढलानदार पास कि ओर|
पंजाब ओर हरयाणा के लोगों कि वजह से हिमाचल का टूरिस्म डिपार्टमेंट काफी पैसे बना रहा है, पर ये लोग सड़कों पे काफी ग़दर डाल के रखते हैं | जहाँ मन किया वहीँ गाडी रोकी, डिक्की खोली ओर ‘क्यूँ पैसा पैसा करती है’ गाना लगा के लगे नाचने | दिक्कत इससे ये होती है कि बाकी के लोगों को दिक्कत हो जाती है, पर किसकी गलती है ये पता करने में सड़क पे जाम ओर भी भयंकर हो जाता है, इसलिए जो चल रहा है चलने दो | तीनो भाई आराम से औट कि सुरंग के पास पहुंचे ओर हमारा रास्ता मनाली जाने वालों से अलग हो गया | नेशनल हाइवे -२१ पे बाईक चलाने में जो आनंद है वो पानीपत के फ्लाई ओवर में भी नहीं है , पर हमारा रास्ता अलग हो चुका था | औट से बंजार जाने वाली सड़क एकदम सीधी तो नहीं है, पर ये सड़क उम्मीद से काफी अच्छी थी | जैसे ही हम बंजार के नजदीक पहुंचे, हमें दिखाई दिए ‘save tirthan valley ‘ के बोर्ड , अब वेल्ली को सेव करना है तो वेल्ली में तो जाना ही पड़ेगा, तो हम घुस गए valley के अन्दर, valley का आखिरी पॉइंट था बदाहग, शाम के चार बज रहे थे ओर जलोड़ी पास जाना अब ठीक नहीं था, तो हमने इरादा किया कि हम लोग ‘ हिमालयन नेशनल पार्क’ में एक रात बिताएंगे ओर अगली सुबह वहां से जलोड़ी पास के लिए निकलेंगे, पर वक़्त कि मार आदमी को कहीं भी पड़ जाती है, हमें भी पड़ी | ४० किलोमीटर ऊपर नीचे घूमने के बाद, दो सरफिरे लोगों से भिड़ने के बाद, उनमे से एक को १०० रुपये देने के बाद हम लोग शाम को बंजार पहुंचे | इस बीच सन्नी एक बूढ़े आदमी को बचाने के चक्कर में ठुक चुका था, ओर उसकी पसलियाँ दर्द कर रही थी | मैं अपने दोस्त को जीवन का ज्ञान देने के चक्कर में रास्ते से बाईक समेत उतर गया | हालाँकि मैंने अपने दोस्त को चलने से पहले जीवन का एक ज्ञान ओर दिया था कि ‘सवारी ना सिर्फ अपने सामान बल्कि अपनी जान की भी खुद ही जिम्मेदार है’, इसलिए हम दोनों की जान बच गयी क्यूंकि जब बाईक गिरी तो उस पर कोई भी सवारी बैठी नहीं थी, हम दोनों हवा हो चुके थे |
रास्ते में एक लड़के ने हमें मदद कि पेशकश की, वो हमें टेंट, स्लीपिंग बैग दिलवाएगा ऐसा उसका कहना था, आखिर में उसको सौ रुपये देके विदा करना पड़ा की भाई जान छोड़ दो हमारी , नहीं तो वो चाहता था की हम उसके साथ उसकी मासी के घर रुकें, वहां खूब मजा आएगा, ऐसा उसका कहना था, पर मजे के चक्कर में ७ बज चुके थे, रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, बाईक में पेट्रोल नहीं था ओर आस पास ५०-५० किलोमीटर तक कोई पेट्रोल पम्प भी नहीं था | रात हुई, एक दो कौड़ी के रेस्ट हाउस में अच्छा सा रूम मिल गया | शराबियों को शराब कि जरुरत थी, तो शराब ढूंढी गई | नेशनल पार्क जाना कैंसल हो चुका था क्यूंकि वहां जाने के लिए दो दिन चाहिए, हमारे पास दो दिन नहीं थे |
अब तक मैं कई पहाड़ी इलाकों में घूम ओर घुस चुका हूँ, पर बंजार अलीबाबा कि कहानियों का गाँव लगता है, सब लोग शराबी लग रहे थे ओर सब लोग हमें देख रहे हैं, ऐसा लग रहा था | हालांकि सबको यही लगता है कि दूसरा आदमी उनकी तरफ ही देख रहा है, उनके बारे में सोच रहा है, जबकि ऐसा कभी होता नहीं है, सब अपनी अपनी जिंदगी जीते हैं, पर बंजार सिटी में, सबके पास टाइम था, हमारी तरफ देखने का ओर हमारी तरफ घूरने का, हमने चुपचाप शराब उठाई ओर कमरे में खुद को बंद कर लिया| मेरा दोस्त कुछ जांबाज़ बन रहा था, तो उसको जिंदगी का एक ओर सच सुनाया गया कि भैय्या अनजान जगह में पोलिस पहले पैसे ले लेती है, फिर नंगा करके मारती है, उसने शराब ओर पोलिस कि मार को अपने दिमाग में वजन किया ओर शराब से हाथ मिला लिया |
शराब पीने के बाद आदमी रंगीन हो जाता है, फिलोसोफेर टाईप, सन्नी का खून ख़तम हो चुका है ओर सिर्फ शराब बची है अन्दर, तो उसको ज्यादा फरक नहीं पड़ा, पर मेरा दूसरा दोस्त अब भगवान् हो चुका था ओर उसने उपदेश शुरू कर दिए थे, थकान ज्यादा थी ओर भूख भी, इसलिए उपदेश जादा देर नहीं चले ओर हम सो गए | मौसम खराब था, ओर सुबह होते होते बारिश शुरू हो गयी, कुल्लू में अक्सर बादल फटा करते हैं, सुबह ४ बजे जब मेरी नींद खुली तो बहार प्रलय कि बारिश हो रही थी, मुझे आधी नींद में यही ख्याल आ रहे थे कि , ‘बंजार में बादल फटा २०० लोगों कि मौत’ | जैसे तैसे बादल गए, मौसम खुला ओर सुबह सात बजे हम जलोड़ी कि ओर रवाना हो लिए | जैसे ही हमने बंजार छोड़ा, रास्ते में छोटे छोटे, cottage टाईप गेस्ट हाउस दिखने लगे, ओर हम अपनी किस्मत को कोसने लगे कि रात को यहाँ रुके होते तो जीवन में नया सवेरा आता |
अब हमें मिलना था एक नए दोस्त से, जोकि बंजार वेल्ली में MyHimachal के साथ जुड़ के देश-प्रदेश में चेंज लाना चाहते हैं , पदम् जी, उम्र ३१ साल, लेकिन energy २५ साल के लौंडे से भी जयादा| उनसे राम -सलाम हुई, फिर उनको भी एक बाईक पे बिठाके जलोड़ी कि ओर ले जाया गया, तीन का काम वैसे भी ठीक नहीं होता, तो हम तीन से चार हो गए, पदम् जी भी ख़ुशी ख़ुशी हमारे साथ हो लिए| बंजार valley में लहसुन खूब दबाके उगता है ओर लोगों ने आने घरों में लहसुन कि गांठें बात के राखी होती हैं, सुखाने के लिए|
ऊपर कि ओर जाते हुए हाथ सुन्न हो चुके थे, दाढ़ी में धुंध जम चुकी थी और देखने के लिए दो आँखें कम पड़ रही थी | पर बाईक जलोड़ी पास कि चढ़ाई पे फ़िदा हो चुकी थी ओर सन्नाटे में एकदम ऐसा लग रहा था कि ये सड़क सिर्फ हमारे लिए ही बनी हो | जैसे ही जलोड़ी पास पहुंचे , जीवन रंगीन हो गया | पास से एक तरफ great हिमालयन पार्क कि चोटियाँ दिखती हैं, तो दूसरी तरफ शिमला जिला के दलाश के सेब के बगीचे | अन्दर जंगले में घुस जाओ तो खुदा भी दिख सकता है | पर हमने पदम् जी बात मानते हुए रघुपुर फोर्ट जाने का मन बनाया | किले देखने में मुझे बड़ा आनंद मिलता है, किले राजा बनवाता था अपने लिए, अपने साम्राज्य के लिए, किले तो गए, राजा भी गए, पर जिन मजदूरों ने वो किले बनाय , दूर दूर से पत्थर ढो के, उनकी जिंदगी तबाह हो गयी |
खैर, किले तक जाने के लिए दो घंटे कि चढ़ाई चढ़नी थी, जिसको चढ़ते हुए सांस बस ख़तम ही होती गयी | पहाड़ी लोगों से जब भी पूछो कि कितनी दूर और है तो जवाब मिलता है १५ मिनट , मेरी यही राय है कि १५ को दस से गुना कर लो, कम से कम उतनी देर तो लगेगी ही | लेटते गिरते पड़ते हम किले तक पहुंचे ओर किले को देखकर कोई ज्यादा ख़ुशी नहीं हुई | आधा किला सराय बन चुका था, concrete technology you see , और बाकी किले का सत्यानाश हो चुका था, शायद राजा गरीब था, इसीलिए छोटी दीवारों से ही काम चला लिया करता था|
वापिस लौटते वक़्त पदम् जी से उनके जीवन कि कहानी जानी, तो भाईसाहब के पिताजी गिओलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया में काम करते थे, पूरा भारत देखा, तरह तरह के विद्यालयों में पढ़े, मतलब कि बचपन का पूरा मजा उठाया, पर वक़्त कि मार किसीको भी, कहीं भी पड़ सकती है, [शायद] उनको भी पड़ी, जमीनी फसाद हुए, घर वापिस आना पड़ा, पढाई लिखी छोड़ के, नहीं तो जो आदमी चंडीगढ़ पढता हो, वो वापिस क्यूँ आएगा पहाड़ों में, पर पदम् जी ने MyHimachal ज्वाइन किया, जीवन को नयी पटरी पे ले आये| अब उनका एक ही ख्वाब है जीवन में, उनके बच्चे ओर शेहेर के बच्चे सबको एक जैसी शिक्षा मिले, उनके बच्चे वैसी लडाइयों में ना पड़ें, जैसी लडाइयों में उनके पुरखे पड़े | अब जमीन साथ तो कोई लेके नहीं जाता, पर जमीन के चक्कर में जिंदगी ख़तम हो जाती है | उन्होंने हमें बताया कि कैसे वो यहाँ गाँव गाँव में जाके हेल्थ मेला चलते हैं, लोगों को बीमारियों के बारे में बताते हैं| उनका सपना है कि वो एक विद्यालय adopt करें ओर उसको एक आदर्श विद्यालय बनाएं ताकि ९ प्रतिशत कि अंधी दौड़ में अंधे होके भागते लोगों को पता चले कि अगर स्टुडेंट अच्छा होगा, तो सब अच्छा होगा, डरपोक स्टुडेंट के लिए ९०० प्रतिशत growth रेट भी कम पड़ जाएगा |
जलोड़ी पास कि उतराई में साफ़-साफ़ लिख रखा था कि कृपया पहले गेअर में चलें क्यूंकि कई कई जगह पे ६० डिग्री का स्लोप है, पर जिस गाडी में तेल ना हो, ओर पेट्रोल पम्प ५० किलोमीटर दूर हो, उस गाडी वाले को मौत से नहीं डरना चाहिए, तो हमने जांबाजी (बेवकूफी) दिखाते हुए पूरे १३ किलोमीटर न्यूट्रल ही उतार दिए, जान बच गयी, नीचे पहुँच गए, दिल को काफी सुकून मिला |
sabhashh….post bahut atchi hain lekin thodi si lambhi hain
hindi mein gyan bahut ache!!!agli baar gaadi dheere chalana.tumare aur bhi blog post padne ki icha hai abhi meri 🙂
Bade chalo musafir aur gyan baant te chalo….haan ye sach hai jab gaadi waale saale m******d dipper nahin maarte to kitni problem hoti hai….road nahin dikhti…tum saalon aisa risk mat lo bhai….ghumna shumna theek hai par Jaan hai to Jahan hai 🙂
आनन्द आ गया जलोडी की यात्रा करके।
अच्छा, मैं भी जलोडी जाने की सोच रहा हूं लेकिन सैंज की तरफ से। बताइये कैसा रहेगा।
Jaat Ji, sainj se mast hai, maja aaega, ekdam top class jagah hai
So guys once again you did it! I am glad you were able to meet Padam and also enjoy and learn about his hopes and work. As you all are getting part of 'My Himachal' let's see you more and more involved with all the work. It's all for you to take it forward!
Like the spirit , kudos to you and your companion, like dyour photos
सारे फोटो बहुत सुंदर हैं….. जानकारी भी अच्छी दी आपने…..
mesmerizing !
अब अपनी बारी आयी है,
यहाँ जलोरी पास जाने की बस १६ को रामपुर व १७ को जलोरी पर होंगे,
व १७ को श्रीखण्ड की पैदल यात्रा पर,
आप भी चल रहो कि नहीं, मेरे साथ होगे,
नीरज जाट जी,
एक मैराथन धावक, व
एक अन्य घुमक्कड,
यहाँ से चकराता की ओर निकल जायेंगे। बाइक पर सफ़र चलेगा
bhai.mast trip tha yeh to………..keep traveling………..